प्रस्तावनाः करीब साढ़े पांच सौ साल पहले भारतीय समाज में धर्मान्धता, अंधविश्वास, जातिवाद, छुआछूत, भेदभाव जैसी कई सामाजिक बुराइयों की जड़ें बहुत गहरी जमी हुई थीं। चारों ओर कुशासन फैला हुआ था और भ्रष्टाचार का बोलबाला था। हिंदू और मुसलमानों के बीच तो गहरा विद्वेष था ही, संप्रदायों में भी बैरभाव पसर चुका था। ब्राह्मणों का वर्चस्व था और निम्न जाति के लोगों से अमानवीय व्यवहार किया जाता था। ऐसे दौर में गुरूनानक देव जी जैसे महान पुरूष ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी वाणी से न सिर्फ इन बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलंद की, बल्कि समाज को एक अलग दिशा दी। गुरूनानक देव जी के व्यक्तित्व के कई पहलू थे। वे दार्शनिक थे, संत थे, विचारक थे, समाज सुधारक थे, ओजस्वी वक्ता थे और एक महान नेता भी थे। अपने इन गुणों की वजह से ही वह देश-विदेश की अपनी यात्राओं के दौरान लोगों तक अपने संदेश पहुंचा पाए और दुश्मन भी उनके समर्थक बन गए। उन्होंने अपनी इन यात्राओं के दौरान कीर्तन के जरिए लोगों को समाज में फैली विभिन्न कुरीतियों को दूर करने के लिए संदेश दिए। उन्होंने तीन सिद्धांत दिए- वंद चाको (जरूरतमंदों के साथ बांट कर खाओ), किरत करो (किसी को परेशान किए बिना ईमानदारी से काम करो), नाम जपो (प्रभु चिंतन करो)। उन्होंने लोगों से अपने अंदर मौजूद पांच बुराइयों (अहंकार, गुस्सा, लालच, मोह, काम-वासना) को खत्म करने को कहा। गुरूनानक जी के सभी संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पांच सौ साल पहले थे, क्योंकि ये बुराइयां अभी भी हमारे समाज में व्याप्त हैं। तो आइये नजर डालते हैं गुरूनानक जी के उन संदेशों पर, और देखते हैं कि ये कुरीतियां किस तरह आज भी समाज में मौजूद हैं।
वर्तमान स्थिति : हमारे समाज में अंधविश्वास खत्म नहीं हुआ है। आज भी लोग मंदिरों में मूर्तियों द्वारा दूध सोख लेने को चमत्कार की तरह देखते हैं। एक स्थान विशेष पर मंदिर बनाया जाए या मस्जिद, इसके लिए हम दशकों से लड़ रहे हैं। अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करने या खुद को अमर घोषित करने के लिए पार्क और कॉलोनियों में विशाल मूर्तियां लगवा रहे हैं। अपनी सबसे प्रिय वस्तु को अल्लाह को समर्पित करने के नाम पर बेजुबान जानवरों का कत्ल कर रहे हैं। बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाने के बजाय झाड़-फूंक करवाते हैं। किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परिश्रम करने के बजाय मंत्र-तंत्र-साधना में विश्वास रखते हैं। बिल्ली रास्ता काटे, तो सड़क पार नहीं करते।
2. सत्य के मार्ग पर चलो : गुरूनानक जी हमेशा सत्य बोलने और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश देते थे। उन्होंने तो क्रूर मुगल शासक बाबर से ही कह दिया था, ष्तुम बाबर नहीं जाबर (अतिदुष्ट) हो।ष् गुरूनानक जी कहा करते थे, जो मनुष्य सत्य के मार्ग पर चलने का प्रयत्न करता है, प्रभु उसका साथ देते हैं। सत्य के मार्ग में कुछ कठिनाइयां अवश्य आएंगी, लेकिन जल्द ही सब सामान्य हो जाएगा।
वर्तमान स्थिति : आज समाज में झूठ का बोलबाला है। आदर्श, नैतिकता और मानवीयता जैसे गुण खत्म होते जा रहे हैं। बहुसंख्यक लोगों का मुख्य ध्येय यथासंभव अपना स्वार्थ सिद्ध करना है, फिर चाहे इसके लिए उन्हें कितने ही झूठ क्यों न बोलने पड़ें और कितने भी गलत काम क्यों न करना पड़े। भारत का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य इसका सटीक उदाहरण है। आज हालात यह हो चुके हैं कि गंभीर अपराधों में लिप्त आरोपियों का भी नायक और देशभक्त की तरह सम्मान किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर दो घटनाओं पर नजर डाल सकते हैं। पहली, जब जनवरी 2018 में जम्मू कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के बाद स्थानीय लोगों और नेताओं ने आरोपियों के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकाली थी। वहीं, दूसरी, जब बुलंदशहर में गोकशी के शक में एक इंस्पेक्टर समेत दो लोगों की हत्या के आरोपी पिछले दिनों जमानत पर जेल से वापस आए, तो लोगों ने उन्हें देशभक्त बताते हुए माला पहनाई।
वर्तमान स्थिति : मनुष्य ने आज बहुत तरक्की कर ली है, लेकिन वह दुनिया से गरीबी और असमानता को खत्म नहीं कर पाया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 तक विश्व की आधी आबादी यानी 3 अरब लोग की प्रतिदिन की आय सिर्फ 2.5 डॉलर है। 1 अरब 30 लाख लोग अतिगरीब हैं। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 2012 तक भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। यही नहीं, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी काफी दयनीय है। सरकार ने दूर-दराज के इलाकों में अस्पताल तो बना दिए हैं, लेकिन वहां इलाज के लिए डॉक्टर नहीं है।
4.ईश्वर की निगाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं : ऊंच-नीच का विरोध करते हुए गुरूनानक देव श्जपुजी साहिबश् में कहते हैं कि श्नानक उत्तम-नीच न कोईश् जिसका भावार्थ है कि ईश्वर की निगाह में कोई भी छोटा-बड़ा नहीं है। गुरूनानक जी ने लोगों को विश्व बंधुत्व का संदेश दिया। उन्होंने सभी समुदायों खासतौर पर हिंदू और मुसलमानों के बीच आपसी सौहार्द्र के लिए बहुत प्रयास किए। उनके बारे में एक कहावत मशहूर है-
’गुरूनानक शाह फकीर, हिंदू का गुरू, मुसलमानों का पीर’
वर्तमान स्थितिः पूरी दुनिया आज भी नस्लवाद, संप्रदायवाद से जूझ रही है। भारत में नमें ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, न्यूजीलैंड व कई अन्य देशों में आतंकवादी हमले हुए हैं। हमारे देश में जात-पात की जड़ें अब भी जमी हुई हैं। उदाहरण के लिए कर्नाटक की एक घटना पर नजर डालें, जहां हाल ही में एक सांसद ए नारायणस्वामी को दलित होने की वजह से उनके संसदीय क्षेत्र के गांव में नहीं घुसने दिया गया। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, वर्ष 2006-2016 के बीच दलित और अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ 4 लाख से ज्यादा अपराध दर्ज हुए।
5. मन को नियंत्रित करोः गुरूनानक जी मन को नियंत्रित करने को सबसे महत्वपूर्ण मानते थे। वे कहते थे कि तीर्थों पर स्नान करने से पवित्रता नहीं मिलती। ईश्वर शरीर की पवित्रता पर नहीं, बल्कि मन की पवित्रता पर रीझते हैं। हमें अपना ध्यान मन की शुद्धता पर केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि उसे नियंत्रित करना बहुत कठिन है।
वर्तमान स्थितिः आज लोगों के मन में पवित्रता नहीं है। लोग असल जिंदगी में तो कई गलत कार्य करते हैं, लेकिन दुनिया के सामने खुद को ईमानदार बताते हैं। मन के अशांत होने से लोगों की इच्छाएं असीमित हो गई हैं और उन्हें पूरा करने के लिए वह अनैतिक कार्यों की ओर अग्रसर होता है।
वर्तमान स्थिति : आज के दौर में हर कोई धन के पीछे भाग रहा है। इसे एक हिंदी फिल्म के गाने के बोल ष्बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैयाष् से अच्छी तरह समझ सकते हैं। धन के कारण रिश्ते टूट रहे हैं। लोगों के लिए धन-संपत्ति के आगे घर-परिवार, मां-बाप, भाई-बहन की भी कोई अहमियत नहीं है। धन ईमानदारी से कमाया जा रहा है, या बेईमानी से, इसकी परवाह भी किसी को नहीं है। व्यापारी ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए मिलावटी और घटिया सामान बेच रहे हैं, वहीं कई नेता, अफसर सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए रिश्वत ले रहे हैं।
वर्तमान स्थिति : आज महिलाओं की स्थिति में सुधार तो आया है, लेकिन उन्हें अब भी पुरुषों के बराबर हक नहीं दिया जाता। गांवों में ही नहीं, शहरों में भी मासिक धर्म के दौरान महिलाओं से अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है। लोग आज भी लड़के की चाहत में बालिका भ्रूण को कोख के अंदर ही मार देते हैं। दहेज के लिए महिला की हत्या तक कर दी जाती है। बाहरी दुनिया में भी महिलाओं को सिर्फ भोग-विलास की वस्तु समझा जाता है।
वर्तमान स्थिति : वर्तमान में पशुओं के खिलाफ क्रूरता बढ़ती जा रही है। हर साल बकरीद पर लाखों-करोड़ों जानवरों की हत्या की जाती है। अभी भी कई मंदिरों में जानवरों की बलि दी जाती है। शहरों में जानवरों का मांस, खाल इत्यादि की जरूरतों के लिए बड़ी संख्या में बूचड़खानों में पशुओं को काटा जाता है। प्रतिबंध के बावजूद जंगलों में बाघ, हाथी, गैंडा आदि जानवरों का शिकार किया जाता है। लोग तोता-मैना जैसे कई पक्षियों को अपने मनोरंजन के लिए पिंजरों में कैद करके रखते हैं।
वर्तमान स्थिति : आज न सिर्फ युवावर्ग बल्कि बच्चे भी नशे की गिरफ्त में हैं। हमें स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चे कहीं भी गुटखा खाते और सिगरेट पीते हुए मिल जाएंगे। एक बड़ा युवा वर्ग ड्रग्स, कोकीन, गांजा जैसे मादक पदार्थों का आदी हो गया हैं। महिलाएं भी खुद को पुरुषों के बराबर दिखाने के लिए खुलेआम सिगरेट और तंबाकू पीने लगी हैं।
उपसंहार : गुरुनानक जी अपनी पूरी जिन्दगी के दौरान जिन बुराइयों के खिलाफ लोगों को जागरुक करते रहे वो आज भी अपना सिर उठाकर खड़ी हैं। लोग आज भी धर्म और जाति के आधार पर बंटे हुए हैं। न सिर्फ लोग बल्कि देश भी अमीर और गरीब की श्रेणी में विभाजित हैं। इस धरा पर आज भी बड़ी मात्रा में गरीबी और भुखमरी फैली हुई है। नस्ल और लिंग के आधार पर लोगों से भेदभाव जारी है। समृद्धि और विकास के नाम पर संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। तथाकथित सभ्य और विकसित देशों के बीच महाविनाश के हथियार बनाने की होड़ मची है। ऐसी परिस्थितियों में गुरुनानक जी के संदेशों का महत्व और बढ़ जाता है। आज हमें गुरुनानक जी के संदेशों को अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में उतारना होगा। लोगों को समझाना होगा कि धर्मांन्धता, कट्टरता, नस्लवाद, जातिवाद, अंधविश्वास, हिंसा, लालच, सत्तालोलुपता पूरी दुनिया को विनाश के रास्ते पर ले जा रहे हैं। आपस में प्यार, भाईचारा, विश्वास जगाने के लिए उनकी सोच को बदलना होगा। उन्हें झूठी मान्यताओं, रूढ़ियों, अंधविश्वासों, आडंबरों से दूर करना होगा। लोगों को एकजुट करके समाज को बांटने वालों को बहिष्कृत करना होगा। चुनाव में धर्म और जाति के नाम पर नहीं, बल्कि विकास, शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर वोट देना होगा। हमें इन सभी कार्यों के लिए गुरुनानक जी जैसे ऐसे पथप्रदर्शकों की जरूरत है, जो युवाओं के रोल मॉडल बन सकें और उन्हें ऐसे रास्ते पर ले जा सकें, जहां सिर्फ खुशहाली हो, दुख व परेशानियों का नामोनिशान न हो।
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