८ फरवरी २०१०
रीतेश पुरोहित ।। नई दिल्ली
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित यह तो मानती हैं कि दिल्ली के जल सोतों को भी विरासत के तौर पर देखा जाना चाहिए, लेकिन कई ऐतिहासिक इमारतों की तरह ये जल सोत भी खत्म हो चुके हैं या खत्म होने के कगार पर हैं। महरौली में ख्वाजा कुतुबुदृदीन बख्तियार काकी की दरगाह परिसर में मौजूद सैकड़ों साल पुरानी कुतुब की बावली की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वैसे तो यह बावली गुलाम वंश के जमाने की है, लेकिन न तो इसे एएसआई का संरक्षण हासिल है और न ही दिल्ली सरकार के आर्कियॉलजी डिपार्टमेंट का। 2003 में यह बावली डीडीए के पास थी, उसके बाद वक्फ बोर्ड ने इसे अपनी संपत्ति माना, लेकिन इसे बचाने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजतन आसपास की गंदगी इस बावली में फेंकी जा रही है और अब यह अपनी अंतिम सांसें गिन रही है।
महरौली में ख्वाजा बख्तियार काकी की मजार पर रोज सैकड़ों लोग मत्था टेकने आते हैं, लेकिन यहां मौजूद बावली के बारे में कम ही लोगों को पता है। कुछ साल पहले तक इस बावली में पानी था, लेकिन अब यह पूरी तरह सूख चुकी है। फिलहाल यह बंद है और लोगों को इसके नीचे जाने की इजाजत नहीं है। करीब आठ साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट में पेश की गई लिस्ट में डीडीए को इस बावली का केयरटेकर बताया गया था, लेकिन इसके एक साल बाद हाई कोर्ट में पेश की गई रिवाइज्ड लिस्ट में इस बावली को दिल्ली वक्फ बोर्ड की लिस्ट में दिखाया गया। सूत्रों का कहना है कि दरगाह से जुड़े सारे मसलों की देखरेख के लिए नियुक्त वक्फ बोर्ड की कमिटी भी मानती है कि लोगों ने इस बावली को कूड़ा फेंकने की जगह में तब्दील कर दिया है। कमिटी के मैनेजर फैजान अहमद मानते हैं कि इस बावली की साफ-सफाई की जिम्मेदारी कमिटी की है, लेकिन उनका कहना है कि अगर हम खुद यह काम करवाते हैं तो हमें आसपास के लोगों का विरोध झेलना पड़ सकता है। हम नहीं चाहते कि इस पवित्र जगह पर कोई ऐसी वैसी हरकत हो, इसलिए इसके लिए हम एमसीडी को कई बार पत्र लिख चुके हैं।
दिल्ली में जल सोतों को बचाने की मुहिम से लंबे समय से जुड़े विनोद जैन बताते हैं कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा था कि कोई भी जल सोत जैसे तालाब, झील, बावली आदि की सफाई की जिम्मेदारी उसी एजेंसी की होगी, जिसकी जमीन पर वह जल स्रोत मौजूद है। अगर कोई इसके पीछे अपनी मजबूरी बताता है, तो इसका मतलब यह हुआ कि वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है। जल सोत से जुड़े इस पूरे मसले के लिए हाई कोर्ट ने एक मॉनिटरिंग कमिटी का गठन किया था और दिल्ली सरकार के चीफ सेक्रेटरी राकेश मेहता को इसका अध्यक्ष बनाया था। विनोद का कहना है कि अगर वक्फ बोर्ड वाकई इस बावली को बचाना चाहता है, तो वह इस बारे में दिल्ली सरकार के चीफ सेक्रेटरी से संपर्क क्यों नहीं करता। उनका कहना है कि दिल्ली के इन जल सोतों से जुड़ी एजेंसियां एक तरफ तो उन्हें अपने हाथ से खोना भी नहीं चाहतीं और दूसरी तरफ उनको बचाने की कोशिश भी नहीं करतीं।
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक हफ्ते पहले ही इंटैक के एक कार्यक्रम में कहा था कि दिल्ली के जल सोत भी हमारी विरासत हैं और उन्हें भी ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर देखा जाना चाहिए। दिल्ली में कुआं, तालाब, बावली समेत 629 जल सोत हैं। इनमें से 15 एएसआई के पास, डीडीए के पास 118, दिल्ली सरकार के पास 469 व सीपीडब्ल्यूडी और पीडब्ल्यूडी के पास 4-4 हैं।
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