रीतेश पुरोहित ।। नई दिल्ली
महरौली में ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से सटा करीब 200 साल पुराना जफर महल जुआरियों और शराबियों का अड्डा तो सालों से बना ही है, अब बदमाशों ने मुगल काल के आखिरी दौर की इमारतों में शुमार इस महल की संगमरमर से बनी जालियां भी तोड़ डाली हैं।
दरगाह की देखरेख में जुटे लोगों का कहना है कि इस महल के हर कोने में लोग जुआ खेलते दिखाई दे जाएंगे। जुआ खेलने वाले दिन में तो बदमाश हाथी गेट से अंदर घुस जाते हैं, लेकिन रात में चौकीदार के ताला लगाकर चले जाने के बाद इन्हें अंदर घुसने में परेशानी होती थी। हालांकि दरगाह के पीछे से महल में जाने का रास्ता है, लेकिन इस रास्ते से महल में जाने के लिए जालियों को फांदकर जाना पड़ता था। इसलिए बदमाशों ने अपनी सहूलियत के लिए ये जालियां तोड़ डालीं। उन्होंने बताया कि हमने इस बारे में कई दिनों पहले ही पुलिस के पास शिकायत दर्ज करा दी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इससे दरगाह की सुरक्षा पर भी खतरा पैदा हो गया है।
दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतें बचाने की मुहिम में जुटी संस्था हेरिटेज ऐंड कल्चरल फोरम की अध्यक्ष ऊषा कुमार का कहना है कि लाल पत्थर से बना जहाज महल मुगल शासन की अंतिम इमारतों में से एक है, जो मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस लिहाज से तोड़ी गईं जालियां भी बेशकीमती थीं। उनका कहना है कि 1999 में हमने स्मारक बदहाली के मद्देनजर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट ने महल के आसपास से अतिक्रमण हटाने और इसका अच्छी तरह संरक्षण करने का आदेश दिया था। लेकिन इसके बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया। मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय ने 1842 में तीन मंजिला जफर महल का निर्माण कराया था, जिसका काफी हिस्सा अब टूट चुका है और अधिकतर जगह दीवारें ही बची हैं। अकबर शाह के बेटे और अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने विशाल हाथी गेट बनवाया था। बताया जाता है कि बहादुरशाह जफर ने इसे इतना बड़ा इसलिए बनवाया था, ताकि हाथी आसानी से उसके अंदर जा सके।
फिलहाल यह दोनों ही स्मारक आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की संरक्षित इमारतों की लिस्ट में शामिल हैं। एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी इन जालियों के टूटने और यहां चल रहीं आपराधिक गतिविधियों से वाकिफ हैं, लेकिन इस ऐतिहासिक स्मारक को आपराधिक तत्वों से छुटकारा दिला पाने में खुद को मजबूर बताते हैं। एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि हमने इस बारे में पुलिस में शिकायत की है। इस तरह के मामलों में कोई ऐक्शन के लिए हमें पुलिस पर ही डिपेंड रहना पड़ता है, क्योंकि हमारे पास इन बदमाशों से निपटने के लिए कोई और बंदोबस्त नहीं हैं। मुगल जमाने की जालियां वाकई बेशकीमती थीं, लेकिन अब हम जल्द ही नई जालियां लगा देंगे और वहां फेन्सिंग भी कर देंगे।
बहादुर शाह जफर हर साल शिकार के लिए जाते वक्त इस महल का इस्तेमाल करते थे। हर साल 'फूल वालों की सैर' उत्सव के दौरान उनको इसी महल में सम्मानित किया जाता था।
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