रीतेश पुरोहित/8 जनवरी 2010
नई दिल्ली।। एक पेड़ गिरा और एएसआई जाग गया। लोथियंस रोड का कब्रिस्तान कई सालों अपनी खराब हालत को सुधारे जाने का इंतजार कर रहा था लेकिन एएसआई को होश अब आया है। टूटे हुए पेड़ों ने इसमें अहम भूमिका निभाई। इस कब्रिस्तान में अंग्रेजों की 200 साल से भी ज्यादा पुरानी 200 कब्रें और कुछ छतरियां हैं। इनमें से कई अब टूट चुकी हैं और और कुछ के अवशेष बचे हैं। अब एएसआई इस पूरे कब्रिस्तान के संरक्षण की तैयारी कर रहा है और जल्द ही यहां काम शुरू करने वाला है।
कश्मीरी गेट पर रेलवे ब्रिज के पास स्थित लोथियन कब्रिस्तान दिल्ली में ब्रिटिशों का पहला कब्रिस्तान था। 1808 से 1867 के बीच यहां ईसाई समुदाय के लोगों को दफनाया जाता था। बाद में कुछ लोगों ने इस कब्रिस्तान पर अवैध तौर पर कब्जा कर लिया और यहां पक्के मकान बना लिए। एएसआई ने भी इसे अपने संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल कर लिया था, लेकिन इसके बाद भी कई सालों तक वे यहां बिना किसी रोकटोक के रहते रहे।
सूत्रों के मुताबिक, जब जगमोहन केंद्र सरकार में मंत्री थे, तब इस कब्रिस्तान को अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया था। तभी यहां की बाउंड्री वॉल बनाई गई और लोहे का गेट लगाया गया। हालांकि फिर इन कब्रों के संरक्षण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन मरम्मत का इंतजार कर रही इन कब्रों की हालत और खराब होने लगी। कुछ समय पहले इस कब्रिस्तान में लगे दो-तीन पेड़ टूटकर कब्र पर गिर गए, जिसके बाद अब तक कुछ कब्रें पेड़ों के नीचे दबी हुई हैं। इससे कब्रों को बुरी तरह नुकसान हुआ है। ये कब्र अभी भी पेड़ के नीचे ही दबी हुई हैं। इसके बाद एएसआई ने इस कब्रिस्तान के संरक्षण के लिए पक्का मन बनाया।
एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहले हमें फंड को लेकर काफी प्रॉब्लम रहती थी, इसी वजह से इन कब्रों की मरम्मत के बारे में कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमने इस कब्रिस्तान का दौरा कर सभी कब्रों की स्थिति को देख लिया है। इनमें से कुछ कब्रों की मरम्मत का काम होगा और जरूरत पड़ने पर कुछ पत्थरों को बदला भी जाएगा।
हमारी पहली कोशिश यह रहेगी कि कब्रों या पिलर के जो हिस्से टूट गए हैं, उन्हें ही वापस लगाया जा सके, ताकि यह कब्रिस्तान अपने पुराने रूप में आ सके। पेड़ों के नीचे दबी कब्रों को बाहर निकाला जाएगा। पहले इस काम में खर्च होने वाले पैसे का हिसाब लगाया जाएगा और डिपार्टमेंट से अंतिम मंजूरी मिलने के बाद अगले महीने से हम काम शुरू कर देंगे।
बताया जाता है कि एक अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल लोथियन केर स्कॉट के कार्यकाल के दौरान 1867 में ही इस कब्रिस्तान के पास मौजूद रेलवे ब्रिज का निर्माण हुआ था। इसी वजह से उनके नाम पर ही इस कब्रिस्तान और सड़क का नाम पड़ा। एक बेहद बड़े साइज में बना 'क्रॉस' का चिह्न इस कब्रिस्तान का मुख्य आकर्षण है। कहते हैं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मारे गए अंग्रेजों की याद में इस ममॉरियल को बनाया गया था।
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