रीतेश पुरोहित
9 oct 2009
नई दिल्ली।। मुगल शासक अकबर शाह की बेगम जीनत महल जब अपनी मन्नत पूरी होने पर महरौली स्थित ख्वाजा बख्तियार काकी की मजार के लिए अपने किले से निकली थीं, तो दिल्ली वाले बेहद गर्मजोशी के साथ इस काफिले में शामिल हुए थे। 'फूल वालों की सैर' नाम से मशहूर हुए इस काफिले को बाद में त्योहार की तरह मनाया जाने लगा। आज करीब 175 साल बाद भी ख्वाजा की दरगाह पर ऐसी ही गर्मजोशी देखी जा सकती है। हर धर्म के लोग मजार पर मत्था टेकने आ रहे हैं और ख्वाजा से दुआएं मांग रहे हैं। हर साल सितंबर-अक्टूबर के महीने में मनाए जाने वाले इस मेले की गुरुवार को शुरुआत हो गई है और शनिवार को मजार से कुछ दूरी पर स्थित जहाज महल में रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
असल में मुगल शासक अकबर शाह अपने दूसरे बेटे मिर्जा जहांगीर को शाही वारिस बनाना चाहते थे, लेकिन अंग्रेजों को यह मंजूर नहीं था। इससे नाराज होकर मिर्जा ने अंग्रेज अधिकारी सीटन को बुरा-भला कह दिया। गुस्साए अंग्रेजों ने शहजादे को इलाहाबाद के किले में नजरबंद कर दिया। मिर्जा की मां जीनत महल ने इससे बेहद परेशान हो गईं। कई कोशिशें करने के बाद अंत में उन्होंने महरौली में ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार पर अपने बेटे की वापसी और बदले में मजार पर फूलों की चादर और मसहरी चढ़ाने की मन्नत मांगी। आखिरकार ख्वाजा ने उनकी सुन ली।
शहजादे को रिहा कर दिया गया और दिल्ली लौटने की इजाजत भी दे दी। बेगम मन्नत पूरी होने पर जोरशोर से और हाथी-घोड़ों के काफिले के साथ-साथ महरौली की और चल पड़ीं। इस काफिले में फूलवाले भी थे, जो अपने हाथों से गढ़ी चादरों ओर पंखों को लेकर सारी दिल्ली को महकाते हुए चल रहे थे। इसी वजह से काफिले को 'फूल वालों की सैर' नाम दिया गया। हिंदू जनता ने भी अपनी खुशी का इजहार करते हुए पास ही स्थित योगमाया मंदि में छत्र और पोशाक चढ़ाई।
इस दौरान बादशाह इस पूरे माहौल से खूब खुश हुए और उन्होंने इसे एक त्योहार का नाम दे दिया। अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर के शासनकाल में यह त्योहार अपने चरम पर पहुंच गया। हालांकि बाद में अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने की नीति के तहत इस मेले को बंद करा दिया। 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा से इस मेले को नया जीवन मिला। तब से यह मेला हर साल अंजुमन सैर-ए-गुलफरोशां की देखरेख में यहां लगता है।
गुरुवार को उपराज्यपाल ने भारी सिक्यूरिटी के बीच मजार पर चादर चढ़ाई। तीन दिनी इस मेले में शुक्रवार को परंपरा के मुताबिक महरौली के ऐतिहासिक योगमाया मंदिर में फूलों का छत्र चढ़ाया जाएगा। दोपहर को कबड्डी, पतंगबाजी, दंगल, और कुश्ती कार्यक्रम होंगे। शनिवार को मुख्य समारोह के तहत रंगारंग कार्यक्रमों और पंखों का प्रदर्शन होगा और कव्वालियों का दिलकश कार्यक्रम होगा।
No comments:
Post a Comment