Monday, April 19, 2010

bhagvan kalbhairav ka anokha mandir

रीतेश पुरोहित


मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन को मंदिरों का शहर कहा जाता है। महाकालेश्वर की नगरी के साथ-साथ इसका ऐतिहासिक महत्व होने के कारण इस शहर में कई दर्जनों मंदिर हैं। वैसे तो काफी लोग यहां भगवान महाकाल के दर्शन करने आते हैं, लेकिन कालभैरव के मंदिर का यहां अपना ही महत्व है। यह मंदिर शहर से करीब आठ किलोमीटर दूर भैरवगढ़ नाम की जगह पर मौजूद है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। ऐसे में उज्जैन जाने पर इस मंदिर में आपके न जाने से सकता है कि आपको महाकाल के दर्शन का आधा ही लाभ मिले।
दिलचस्प बात यह है कि भगवान कालभैरव की मूर्ति पर प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है और शराब से भरे हुए प्याले को मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाता है। मंदिर के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की आठ से दस दुकानें लगी हैं। खास बात यह है कि इन दुकानों में लाइसेंस न होने की वजह से विदेशी ब्रैंड की शराब नहीं मिलती। वैसे, ये शहर से आपके लिए विदेशी शराब मंगवा जरूर सकते हैं।
मंदिर में शराब चढ़ाने की गाथा भी बेहद दिलचस्प है। यहां के पुजारी बताते हैं कि स्कंद पुराण में इस जगह और इसके धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार चारों वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। लेकिन ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवा मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्मा हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की और उन्होंने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है और धीरे-धीरे यहां एक बड़ा मंदिर बन चुका है। वैसे, इसका जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।
रात दस बजे तक खुले रहने वाले इस मंदिर में रोजाना 200 से 250 क्वॉटर शराब चढ़ाई जाती है। इसकी वजह है कि कालभैरव की तामसिक पूजा। हालांकि, पहले यह मांस, मछली, मदिरा, मुदा और मैथुन के प्रसाद से पूरी होती थी, लेकिन अब चढ़ावा बस शराब तक सीमित रह गया है। मूर्ति को पिलाई जाने वाली यह शराब आखिरकार चली कहां जाती है, यह अपने-आप में एक अबूझ सवाल है। लोगों की मानें, तो यह सारी शराब भगवान की मूर्ति पीती है, लेकिन इसका पता लगाने के लिए 2001 में मंदिर के आस-पास हुई खुदाई में मिट्टी में शराब की मौजूदगी नहीं पाई गई।

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