रीतेश पुरोहित
29 march 2010
नई दिल्ली।। 16 मार्च 2010 को संसद ने द एनशिएंट मॉन्यूमेंट्स ऐंड आर्कियॉलजिकल साइट्स ऐंड रिमेन्स (अमेंडमेंट ऐंड वेलिडेशन) ऐक्ट पास कर दिया। इसके साथ ही कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े कुछ प्रोजेक्टों को पूरी तरह कानूनी मान्यता मिल गई। 1958 के ऐक्ट से तुलना करें, तो नए कानून को पहले से कहीं ज्यादा कड़ा किया गया है। एक्सपर्ट्स इसे अच्छा कदम मानते हैं, लेकिन उनका कहना है कि इससे तभी फायदा होगा, जब इन नियमों का सख्ती से पालन हो।
क्या है नए ऐक्ट में
नए ऐक्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी का गठन करेगी। यह कमिटी किसी संरक्षित स्मारक या क्षेत्र के महत्व को सामने लाने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करेगी। ग्रेडिंग से यह पता चल सकेगा कि संबंधित स्मारक का क्या महत्व है। अथॉरिटी यह सुझाव भी देगी कि इस ऐक्ट के नियमों को किस तरह लागू किया जा सकता है। साथ ही इस बात पर भी ध्यान देगी कि रेग्युलेटेड एरिया (संरक्षित स्मारक के 300 मीटर के दायरे) में प्रस्तावित डिवेलपमेंट प्रोजेक्टों से संबंधित स्मारक पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कुछ मायनों में इस अथॉरिटी को सिविल कोर्ट की तरह पावर दी गई है। जैसे अथॉरिटी को इस बात का अधिकार होगा कि वह किसी भी व्यक्ति को बयान देने, किसी कागजात को अपने सामने पेश करने के लिए बुला सके।
इस ऐक्ट में बताया गया है कि किसी पुरातत्व अधिकारी के अलावा कोई भी संरक्षित स्मारक या एरिया के 100 मीटर के दायरे (प्रतिबंधित क्षेत्र) में निर्माण या खुदाई का काम नहीं कर सकता। हालांकि अगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) को यह लगता है कि सार्वजनिक उपयोग के लिए इस दायरे में कोई प्रोजेक्ट या डिवेलपमेंट वर्क जरूरी है, तो वह इसके लिए अपनी अनुमति दे सकता है। हालांकि यह साबित होना जरूरी है कि इस प्रोजेक्ट या वर्क से संबंधित स्मारक को कोई अगर कोई व्यक्ति किसी संरक्षित इमारत के 300 मीटर के दायरे यानी नियंत्रित क्षेत्र में निर्माण कार्य करना चाहता है तो उसे इसके लिए उसे एएसआई के संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
नए ऐक्ट में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी की सिफारिश पर किसी भी स्मारक के प्रतिबंधित और नियंत्रित क्षेत्र को बढ़ा सकती है।
एएसआई को किसी एक्सपर्ट हेरिटेज बॉडी के साथ मिलकर हर संरक्षित स्मारक के लिए अलग से हेरिटेज उपनियम (बाई-लॉज ) बनाने होंगे।
अगर कोई व्यक्ति किसी भी संरक्षित स्मारक के नियंत्रित क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण कार्य करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे दी जाने वाली अधिकतम सजा तीन महीने से बढ़ाकर दो साल कर दी गई है, जबकि जुर्माने की रकम को पांच हजार से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है।
अगर यह बात साबित होती है कि केंद्र सरकार के किसी अधिकारी की सहमति से प्रतिबंधित या नियंत्रित क्षेत्र में गैरकानूनी तरीके से निर्माण, पुननिर्माण या मरम्मत का काम चल रहा है तो उसे तीन साल तक की कैद या जुर्माना किया जा सकता है।
विशेषज्ञ की राय
दिल्ली हाई कोर्ट की सीनियर वकील और हेरिटेज ऐंड कल्चरल फोरम की अध्यक्ष ऊषा कुमार कहती हैं कि यह नया ऐक्ट काफी अच्छा है। नियम काफी सख्त किए गए हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐतिहासिक स्मारकों से संबंधित कानूनों की रोज धज्जियां उड़ती हैं। हर संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में रातों-रात बहुमंजिला इमारत खड़ी हो जाती हैं, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। सरकारी अधिकारी आंखें मूंदे रहते हैं या फिर उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव है। किसी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण कार्य न करने का नियम 1992 से लागू है, लेकिन साउथ दिल्ली में ऐसे कितने ही मकान और बिल्डिंगें हैं, जो 1992 के बाद बनीं और वे किसी न किसी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में आती थीं। साउथ दिल्ली में ही मौजूद सराय शाहजी और बेगमपुरी मस्जिद की हालत देखिए। हाई कोर्ट ने कितनी ही बार एएसआई से इनके आसपास मौजूद अतिक्रमण हटाने को कहा है, लेकिन आज तक आदेश का पालन नहीं हुआ।
पहले इस बात पर विवाद होता था कि किसी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर और इससे आगे 200 मीटर के दायरे को कहां से नापा जाए। सरकारी अधिकारी अपनी मजीर् के मुताबिक और फायदे के लिए, हेरिटेज साइट की किसी भी जगह से 100 मीटर की दूरी तय कर देते थे, लेकिन नए ऐक्ट में इसे साफ किया गया है। नए ऐक्ट के मुताबिक, नोटिफिकेशन में संरक्षित स्मारक की जहां से शुरुआत का उल्लेख है, वहीं से उसका नियंत्रित एरिया माना जाएगा। इस नए प्रावधान इससे आम लोगों को फायदा होगा।
नए ऐक्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े कुछ प्रोजेक्टों समेत कई और निर्माणों को मान्यता दी गई है, जो तत्कालीन कानून के मुताबिक गैरकानूनी थे। इसका मतलब यह हुआ कि जिन लोगों ने कानून का पालन करते हुए संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं किया, उन्होंने बहुत बड़ी गलती की? सरकार ने कानून मानने वाले लोगों के साथ धोखा किया।
अब एएसआई को 3 महीने और 15 दिन में यह फैसला करना होगा कि नियंत्रित क्षेत्र में मौजूद इमारत में निर्माण की अनुमति दी जाए या नहीं। साथ ही अगर अनुमति देने के बाद एएसआई को लगता है कि संबंधित निर्माण की वजह से स्मारक पर किसी तरह का असर पड़ सकता है या नुकसान पहुंच सकता है, तो वह अनुमति रद्द कर सकता है। पुराने ऐक्ट में यह प्रावधान नहीं था।
नए कानून के सेक्शन 20-एन(1) में केंद सरकार को यह पावर दी गई है कि वह कुछ विशेष परिस्थितियों में नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी को हटा (सुपरसीड) सकती है।
नए ऐक्ट में एक खामी है। एएसआई को अभी कोई अतिक्रमण हटाओ दस्ता बनाने का अधिकार नहीं दिया गया है, जिसके जरिए वह संरक्षित इमारत के प्रतिबंधित क्षेत्र में हो रहे निर्माण को रुकवा सके या अतिक्रमण को हटा सके। एएसआई को इसके लिए अब भी पुलिस पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। अवैध निर्माण के लिए सजा और जुर्माने को बढ़ाया गया है, लेकिन अब भी इस बात की संभावना बेहद कम है कि किसी को यह सजा दी जाएगी।
नया कानून क्यों
पुराने ऐक्ट के तहत कोई भी किसी भी स्थिति में स्मारक के 100 मीटर के दायरे में निर्माण की इजाजत नहीं थी, लेकिन एएसआई की विशेषज्ञ सलाहकार कमिटी ने कॉमनवेल्थ गेम्स के प्रोजेक्टों समेत कई निर्माणों को अपनी अनुमति दे दी थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस कमिटी को गैरकानूनी करार दिया था और एएसआई को आदेश दिया था कि वह तुरंत इन सभी जगहों पर चल रहे निर्माण को तुरंत रुकवाए। ऐसे में दिल्ली में चल रहे गेम्स के कुछ प्रोजेक्ट पर तलवार लटक गई थी। इसके बाद सरकार ने कानून में संशोधन का मन बनाया। हालांकि उस वक्त संसद सत्र नहीं चल रहा था, इसलिए गेम्स प्रोजेक्टों पर लगी रोक हटाने के लिए आनन-फानन में अध्यादेश लाया गया और अब संसद के मौजूदा सत्र में बिल को पेश कर कानूनी शक्ल दे दी गई है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5736557.cms?prtpage=1
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