रीतेश पुरोहित
नई दिल्ली ।। आठ ऑस्कर अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म स्लमडॉग मिलिनेअर में स्लम में रहने वाले एक बच्चे को करोड़पति बनते हुए दिखाया गया है। रीयल लाइफ में भी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले कई बच्चे बड़ा आदमी बनने के सपने को हकीकत में बदलने के लिए जी-जान से जुटे हैं। एनसीआर के पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे ये बच्चे बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भी संपन्न घरों के बच्चों को पछाड़कर अव्वल आ रहे हैं। ये बच्चे बड़े होकर अपने जैसे ही गरीब बच्चों को पढ़ाकर एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं। काफी सारे बच्चों का कहना है कि उन्हें मौका मिले तो वे भी कमाल कर सकते हैं।
निजामुद्दीन ब्रिज के पास यमुना से सटी झुग्गी बस्ती में रहने वाला 18 साल का विवेकानंद बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से अपने पैरंट्स के साथ यहां आया था। घर में कमाने वाला केवल बड़ा भाई है, जो पेंटर है। विवेकानंद पहले यमुना में लोगों के फेंके गए सिक्के बीनने का काम करता था। कई सालों तक वह स्कूल नहीं जा पाया लेकिन बाद में एक एनजीओ 'राहुल मल्टी डिसिप्लनरी रिसर्च सेंटर' की मदद से उसने धीरे-धीरे पढ़ना सीखा। अब वह पंढारा रोड स्थित एक स्कूल में अपनी क्लास में अव्वल है। उसने कड़कड़ाती ठंड में स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई की है। विवेकानंद ने दोस्तों से स्लमडॉग मिलिनेअर के बारे में सुना। वह कहता है कि जिस तरह फिल्म में एक स्लम में रहने वाला जमाल इतना पॉपुलर हो जाता है, उसी तरह मैं भी खूब पढ़-लिखकर नाम कमाना चाहता हूं।
इंदिरा पुरम, गाजियाबाद में डीपीएस स्कूल के पास स्थित स्लम बस्ती में रहने वाली 13 साल की शिखा प्राइमरी स्कूल में तीसरी क्लास तक पढ़ाई करने के बाद कुछ सोशल वर्कर्स का साथ पाकर एक पब्लिक स्कूल में एडमिशन लेने पहुंची। स्कूल के प्रिंसिपल ने शिखा को चौथी क्लास में एडमिशन देने से मना करते हुए उसका नाम तीसरी क्लास में ही लिखने पर जोर दिया। शिखा ने इसे एक चैलेंज की तरह लिया। अब वह छठवीं क्लास में है और पांचवीं में 83 पसेर्ंट नंबर पाकर वह स्कूल टॉपर रही। शिखा के पिता भी उसे पढ़ाना नहीं चाहते थे।
शिखा के स्कूल में ही सातवीं क्लास में पढ़ने वाले संजीत दास की कहानी भी ऐसी ही है। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं और मां घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं। संजीत ने स्लमडॉग मिलियनेयर देखी है और फिल्म को ऑस्कर मिलने से वह बहुत खुश है। फिल्म में जमाल की भूमिका निभाने वाले देव पटेल का रोल उसे बहुत पसंद आया। संजीत कहता है कि एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले किसी लड़के को करोड़पति बनते देखना वाकई में काफी रोमांचकारी है। यह फिल्म स्लम में रहने वाले सभी बच्चों के लिए एक आस बंधाती है।
सोमवार को ही एनजीओ 'चेतना' ने झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों को यह फिल्म दिखाई। कीतिर् नगर के कमला नेहरू कैंप में रहने वाले श्रवण का कहना है कि यह फिल्म उनके जैसे बच्चों की सही तस्वीर सामने लाती है। कढ़ाई के काम में जुटे 16 साल के विजय के मुताबिक इस तरह की और भी फिल्में बननी चाहिए, ताकि लोगों को हमारे मुश्किल जिंदगी के बारे में पता चल सके।
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