Saturday, March 27, 2010

महरौली में मिली बलबन के जमाने की कब्र

रीतेश पुरोहित / १६ देक २००९

नई दिल्ली।। महरौली में बलबन के मकबरे पर संरक्षण का काम कर रहे आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को यहां खुदाई के दौरान सैकड़ों साल पुराने अवशेष मिले हैं। इनमें 13वीं सदी के बलबन काल की एक कब्र भी शामिल है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि यह कब्र गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन की हो सकती है। इसके अलावा एएसआई को यहां कुछ पिलर, चबूतरा, मिट्टी के बर्तन, तरकश और चौसर भी मिला है। एएसआई का कहना है कि अब इस बारे में पता किया जा रहा है कि ये अवशेष किस काल के हैं।

एएसआई ने कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर लोगों को दिल्ली की ऐतिहासिक विरासत दिखाने के लिए 46 स्मारकों को चुना है और वह इन जगहों पर संरक्षण का काम कर रहा है। महरौली के आर्कियॉलजिकल पार्क में मौजूद गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन के मकबरे का नाम भी इसमें शामिल है। हालांकि यहां इस मकबरे के अवशेष ही बचे हैं। सबसे पहले इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) ने बलबन के मकबरे का संरक्षण किया था। इसके बाद एएसआई ने इसे अपने प्रोटेक्शन में ले लिया और यहां संरक्षण और मरम्मत का काम कराया। फिलहाल मकबरे के पूर्व में बलबन के बेटे खां शाहिद की एक कब्र मौजूद है।
एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स को ध्यान में रखते हुए हमने करीब चार महीने पहले बलबन के इस मकबरे पर काम शुरू किया था। हमने यहां 3 फुट से लेकर 12 फुट तक खुदाई की और हमें स्ट्रक्चर मिलने शुरू हो गए। हमें यहां एक कब्र मिली है। यह लाल पत्थर से बनी हुई है और इससे जाहिर होता है कि ये कब्र 13वीं शताब्दी यानी बलबन काल की है, क्योंकि उसी काल में लाल पत्थर का इस्तेमाल किया जाता था। हो सकता है कि यह कब्र बलबन की हो। हमें यहां कुछ पिलर भी मिले हैं और इन्हें देखकर लगता है कि यहां राजा का दरबार लगा करता था। बाकी अवशेषों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। अब इनकी कार्बन डेटिंग की जाएगी, जिससे पता चल सकेगा कि ये अवशेष किस काल के हैं। यह भी पता चल सकता है कि यह कब्र किसकी है। अधिकारी का कहना है कि खुदाई का काम लगभग पूरा हो चुका है और इसके बाद कंजर्वेशन का काम करेंगे और फिर ब्यूटीफिकेशन और लाइटिंग का काम किया जाएगा।
बलबन का मकबरा भारत और इस्लामिक वास्तुशास्त्र का मिलाजुला रूप है। बलबन एक तुर्किश विद्वान का बेटा था, लेकिन बचपन में मंगोलों ने उसे बेच दिया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे आजाद कराया। उसने गुलाम वंश के ही शासक नासिरुद्दीन महमूद की बेटी से शादी की। नासिरीरुद्दीन का कोई बेटा न होने की वजह से उसकी मौत के बाद बलबन ने खुद को गुलाम वंश का शासक घोषित कर दिया। 1266 में गयासुद्दीन की पदवी के साथ उसने भारत की राजगद्दी संभाली और 1287 तक राज किया।

7 comments:

VICHAAR SHOONYA said...

i would like to visit the site. is it open to ordinary people

Chandan Kumar Jha said...

पुरातात्विक दृष्टी से तो यह अच्छी बात हुई ।

गुलमोहर का फूल

सम्वेदना के स्वर said...

जानकारी के लिए धन्यवाद... एक अवसर अपने खोये इतिहास को समेटने का..

shama said...

Bharat me na jane aisee sainkadon jagahen hongi jahatak insaan pahuncha nahi!
Apne behad achhee jaankari hasil kara dee..

saurabh said...

apne jankariyon se bhara ye leekh likha iske liye dhanyawaad...
apke kam se juda hone ki vajah se ye dilchasp anubhav hoga....hamen apne anubhav ka sasthi banaye rakhiye,.........

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

javed shah said...

is adbhut jankari dene ke liye shukriya,,,