Saturday, March 27, 2010

दोस्त है टेक्नॉलजी

 रीतेश पुरोहित/ २ जनवरी 2010


ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो हर नई तकनीक को संदेह की नजर से देखते हैं। उनमें से कई यह कहते  मिल जाएंगे कि इंटरनेट ने नई पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है। क्या सचमुच ऐसा है? मुझे एक घटना याद आती है। पिछले साल सर्दी के मौसम में ही एक दिन सुबह-सुबह अचानक मेरा मोबाइल बजा।

ममी का कॉल था। वह काफी परेशान लग रही थीं। पूछने पर बताया कि दो दिन से राहुल (मेरा बड़ा भाई) का फोन नहीं आया है और कई बार कोशिश करने के बाद भी उसका फोन नहीं लग रहा है। मैं सन्न रह गया। भैया उस वक्त इलाहाबाद में पढ़ाई कर रहा था। वह मुझे भी लगभग हर रोज कॉल कर लेता था, लेकिन याद आया कि मेरी भी उससे दो दिनों से बात नहीं हुई है। मैंने ममी को दिलासा दी और समझाया कि वो कहीं बिजी होगा या उसके मोबाइल में कोई खराबी आ गई होगी। मैंने ममी को समझा तो दिया, लेकिन खुद चिंता में पड़ गया। मैं तो दो-तीन दिनों के अंतराल पर घर फोन किया करता था, लेकिन वह ममी-पापा को फोन करना नहीं भूलता था।
मैंने उसे तुरंत कॉल किया, लेकिन कॉल कनेक्ट ही नहीं हो रहा था। मेरे पास उसके किसी दोस्त का नंबर नहीं था और इलाहाबाद में न तो हमारा कोई रिश्तेदार था और न मैं वहां किसी को जानता था। मैंने कई बार उसके दोस्त का कॉन्टेक्ट नंबर लेने के बारे में सोचा, लेकिन जब भी उससे बात होती, भूल जाता। उस दिन मैं पछता रहा था कि मैंने इतनी बड़ी लापरवाही क्यों की? मैंने अपने रूममेट्स को भी यह बात बताई। हम सब सोच में पड़ गए। चिंता बढ़ती जा रही थी और कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। अचानक आइडिया आया कि क्यों न उसे ई-मेल कर दूं, लेकिन मुश्किल यह थी कि वो नेट पर ऑनलाइन कब होगा। कब वो मेरा ई-मेल देखेगा और कब वो घर पर कॉल करेगा। फिर दिमाग में आया कि उसकी ऑर्कुट प्रोफाइल पर इलाहाबाद के कई फ्रेंड्स होंगे। ऑर्कुट के जरिए उसके किसी दोस्त का मोबाइल नंबर मिल सकता है।
मैं उसके दोस्त को फोन करके भैया का हालचाल पूछ सकता हूं। यही सोचकर मैं इंटरनेट कैफे पर गया। वहां जाकर भैया की फ्रेंड लिस्ट खंगाल ही रहा था कि अचानक उसका फोन आ गया। उसने बताया कि उसके सिमकार्ड की वैलिडिटी खत्म हो गई थी और उसकी यूनिवर्सिटी के आसपास मोबाइल रिचार्ज की कोई दुकान नहीं थी, इसलिए वो किसी को कॉल नहीं कर पाया। उससे बात करके मेरी जान में जान आई। हालांकि ऑर्कुट से कोई मदद मिलने से पहले ही उसका फोन आ गया, लेकिन तब अहसास हुआ कि एक सोशल नेटवर्किंग साइट की अहमियत क्या है। हमारी पीढ़ी टेक्नॉलजी के साथ ही आगे बढ़ी है इसलिए हम उसी की आंख से अपने जीवन को देखते हैं और अपना रास्ता ढूंढते हैं। तभी तो अपने भाई से कॉन्टेक्ट करने के लिए ऑर्कुट ही मुझे एकमात्र विकल्प नजर आया।

No comments: