Saturday, March 27, 2010

प्रतिकूल भाग्य के लिए भी हम ही होते हैं जिम्मेदार

रीतेश पुरोहित / १३ मई २००९


पिछले दिनों इंटरनेट पर मुझे स्टीफन कॉव का एक लेख पढ़ने को मिला। कॉव पश्चिम के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं, जो लोगों का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना, अपनी वृत्तियों को नए तरह से समझना और जीने का सलीका सिखाते हैं।

स्टीफन कॉव का जो लेख मैं ने पढ़ा उसमें उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि किस तरह अपनी जिंदगी की 90 प्रतिशत घटनाओं की वजह हम स्वयं होते हैं। आम तौर पर कहा यह जाता है कि जिंदगी की ज्यादातर बातों या घटनाओं पर हमारा कोई अख्तियार नहीं होता। गीता में तो यहां तक कहा गया है कि फल की चिंता मत करो क्योंकि फल पर भी तुम्हारा अख्तियार नहीं है। सिर्फ कर्म करो, सिर्फ अपना कर्म क्योंकि वही एक ऐसी चीज है जो पूरी तरह से तुम्हारे वश में है।
लेकिन स्टीफन कॉव ने अपने लेख में इससे बिल्कुल अलग व्याख्या प्रस्तुत की है। वे कहते हैं कि अपने जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों (90 प्रतिशत) के लिए भी हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं। यह विचार मुझे अच्छा लगा और कुछ अलग भी, इसलिए इसे आपके साथ बांटना चाहता हूं।
स्टीफन कॉव लिखते हैं कि हम अपनी लाइफ में होने वाली 10 प्रतिशत घटनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन किसी एक घटना के बाद दिन भर होने वाली 90 फीसदी चीजों को नियंत्रित कर सकते हैं। जैसे आप ट्रैफिक में रेड लाइट को कंट्रोल नहीं कर सकते, लेकिन उसके बाद से होने वाले अपने रिएक्शन को कर सकते हैं, जो रिएक् शन आपके दिन के बाकी के घंटों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं।

स्टीफर एक उदाहरण देते हैं। सोचिए कि आप अपनी फैमिली के साथ ब्रेकफास्ट कर रहे हैं। बगल में बैठी बेटी आपकी शर्ट पर कॉफी गिरा देती है। आप गुस्से से आगबबूला हो जाते हैं और बेटी को जोर से डांट देते हैं। वह रोने लगती है। अब गुस्से का शिकार होती हैं अपनी पत्नी। आप शिकायत करते हैं कि कप टेबल के सिरे पर रखा हुआ था, इसी वजह से वह गिरा। इसके बाद दोनों ओर से तीखी बहस होती है। आखिरकार आप ऊपर के कमरे में जाते हैं और शर्ट चेंज करते हैं। वापस आकर देखते हैं कि बेटी अभी तक रो रही है और उसने अपना ब्रेकफास्ट खत्म नहीं किया है। उसकी स्कूल बस छूट गई है।
उधर, आपकी पत्नी को भी तुरंत ऑफिस के लिए निकलना है। इसके बाद आप कार निकालते हैं। चूंकि आप भी लेट हो चुके हैं, इसलिए 30 किमी/घंटा स्पीड लिमिट वाली सड़क पर 40 की स्पीड से गाड़ी चलाते हैं। नतीजतन ट्रैफिक फाइन के तौर पर पांच सौ रुपये चुकाने होते हैं और 15 मिनट की देरी से आप स्कूल पहुंचते हैं। बेटी गाड़ी से उतरकर आपसे बिना कुछ कहे स्कूल चली जाती है।
अंत में आप भी बीस मिनट लेट होकर ही अपने ऑफिस पहुंचते हैं। पता चलता है कि ब्रीफकेस तो आप घर पर ही भूल गए हैं। शाम को आप घर पहुंचते हैं। लेकिन पत्नी और बेटी आपसे बात नहीं करते।
मतलब आपके दिन की शुरुआत बुरी हुई और पूरा दिन ही खराब हो गया। इसके लिए आप किसे दोषी मानते हैं? कॉफी को, बेटी को, पुलिसवाले को या खुद को। जाहिर है इस सबके लिए आप खुद ही जिम्मेदार हैं। आप चाहते तो एक बुरी घटना से अपना पूरा दिन खराब होने से बचा सकते थे। कॉफी गिरने के बाद आप गुस्से पर काबू रखते हुए बेटी को समझाते और उसे आगे से सावधानी बरतने के लिए कहते। ब्रीफकेस से शर्ट निकालने के बाद समय पर नीचे आते। आपकी बेटी समय पर तैयार हो चुकी होती। वह खुशी-खुशी आपसे विदा लेती और आसानी से बस पकड़ लेती। आप 5 मिनट पहले ऑफिस पहुंचते और जोश के साथ अपने सहयोगियों से मिलते। आपका बॉस भी यह अंदाज देखकर खुश हो जाता।
अंतर देखिए। एक घटना। दो अलग रिएक्शन। नतीजे में जमीन-आसमान का फर्क। यानी यदि किसी भी घटना पर आप सोच समझकर और ठंडे दिमाग से कोई रिएक्शन देते हैं तो यह आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।

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