Monday, April 19, 2010

ऐतिहासिक स्थलों को टूरिस्ट फ्रेंडली बनाएंगे

पिछले दिनों डॉ. गौतम सेन गुप्ता ने आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के महानिदेशक का पद संभाला। सालों बाद इस पद पर किसी आर्कियॉलजिस्ट का आना निश्चय ही महत्वपूर्ण है। रीतेश पुरोहित ने उनसे बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि यह जिम्मेदारी संभालने के बाद डिपार्टमेंट को लेकर उनकी क्या योजनाएं हैं और मौजूदा समस्याओं से निपटने के लिए वह कौन सी रणनीति अपनाएंगे।
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अरसे बाद एक आर्कियॉलजिस्ट ने फिर से एएसआई के महानिदेशक का पद संभाला है। पिछले 15 सालों के दौरान कई पक्ष अनछुए रह गए हैं। इनके बारे में अब आपकी क्या प्लानिंग है और आपका क्या विजन है?

मुझे अभी इस पद को संभाले ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। फिलहाल तो मैं डिपार्टमेंट से संबंधित हर मुद्दे को अच्छी तरह समझ रहा हूं। इस समय हम डिपार्टमेंट में स्पेशलाइज्ड लोगों की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए हम अपने डिपार्टमेंट के लोगों को ट्रेंड करके इस समस्या को सुलझाना चाहते हैं। लोगों को ऐतिहासिक स्मारकों से जोड़ने के लिए हम पब्लिक रिलेशन प्रोग्राम्स पर भी जोर दे रहे हैं। हम हेरिटेज साइट्स को टूरिस्ट फ्रेंडली बनाने में जुटे हैं, लेकिन यह एक लॉन्ग टर्म प्रोसेस है।

देश भर में ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जिन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कई जगहों पर अवैध कब्जे हैं, असामाजिक तत्व यहां डेरा डाले रहते हैं। इस तरह की प्रॉब्लम्स से निपटने के लिए आपके पास क्या ऐक्शन प्लान है?

हम इन सभी प्रॉब्लम्स को जानते हैं। संसद के इसी सत्र में ऐतिहासिक स्मारकों से संबंधित नया कानून पास हुआ है। नए ऐक्ट में इन सभी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए कुछ नए नियम और प्रावधान किए गए हैं।

कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर 46 स्मारकों पर कन्जर्वेशन और रिस्टोरेशन का काम हो रहा है, लेकिन क्या आपको लगता है कि गेम्स के बाद भी इन स्मारकों पर इसी तरह ध्यान दिया जाएगा और ये फिर से नजरअंदाज नहीं किए जाएंगे?

गेम्स केवल हमारे लिए नहीं पूरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। दिल्ली एक ऐतिहासिक शहर है, इसलिए इन खेलों के मद्देनजर हमारी जिम्मेदारी भी काफी है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि गेम्स के बाद भी सभी ऐतिहासिक स्मारकों पर हमारा पूरा ध्यान रहेगा।


कानून के मुताबिक केंद्र द्वारा संरक्षित किसी भी स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई भी कंस्ट्रक्शन या खुदाई नहीं की जा सकती। ऐसी शिकायत मिलने पर एएसआई पुलिस में शिकायत करती है, लेकिन यहां तो देखते ही देखते पूरी बिल्डिंग खड़ी हो जाती है। एएसआई इसे पुलिस की जिम्मेदारी मानती है, लेकिन समस्या जस की तस रहती है। ऐसे में सॉल्यूशन क्या है?
सभी संबंधित डिपार्टमेंट बेहतर तालमेल से काम करें, तभी यह समस्या सुलझ सकती है।

1958 के ऐक्ट के मुताबिक 100 साल पुराने किसी राष्ट्रीय महत्व के स्मारक को संरक्षित घोषित किया जा सकता है, लेकिन देश में कई ऐसे स्मारक हैं जो सैंकड़ों साल पुराने हैं, लेकिन एएसआई की लिस्ट में शामिल नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि किसी ऐतिहासिक स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने की नीति क्या है?
यह बात एकदम सही है कि कई सारे स्मारक ऐसे हैं, जो 100 साल से ज्यादा पुराने हैं, लेकिन वे एएसआई के संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल नहीं हैं। सेंट्रल अडवाइजरी बोर्ड ऑफ आर्कियॉलजी की मीटिंग में इस बारे में चर्चा की गई है। भारत सरकार की इस पर नजर है। हालांकि हम हर साल नए स्मारकों को अपनी लिस्ट में शामिल करते जा रहे हैं।

पूरे देश में इस समय तेजी से डिवेलपमेंट वर्क हो रहा है, लेकिन कई जगहों पर इसके कारण हमारे ऐतिहासिक स्मारक नष्ट होते जा रहे हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?
यह अकेले भारत की नहीं, पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ी समस्या है, लेकिन फ्यूचर के लिए डिवेलपमेंट बहुत जरूरी है। ऐसे में डिवेलपमेंट और कन्जर्वेशन में एक बैलेंस होना चाहिए यानी डिवेलपमेंट इस तरह हो, जिससे ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान न पहुंचे।

आप खुद ऐकडेमिक बैकग्राउंड से आते हैं। आर्कियॉलजी से संबंधित रिसर्च के बारे में आपकी क्या योजनाएं हैं?
इस फील्ड में रिसर्च कराना हमारे मुख्य अजेंडे में है। हम प्री-हिस्ट्री, हिस्टोरिक आर्कियॉलजिकल साइंस, कंजर्वेशन स्टैंडर्ड आदि सब्जेक्ट्स पर रिसर्च कराना चाहते हैं।

देश में आपके 24 सर्कल हैं और हजारों ऐतिहासिक स्मारक आपके संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल हैं, लेकिन डिपार्टमेंट की संरचना सुदृढ़ नहीं है। एएसआई के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। डिपार्टमेंट हर स्तर पर कर्मचारियों और अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है।
यह सही है। हम इस बारे में सरकार से बात कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द इस कमी को पूरा किया जाए।

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