Tuesday, June 29, 2010

दही से चुस्त तंदुरुस्त होती हेरिटेज इमारत

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली ॥ खाने को जायकेदार बनाने वाला दही वैसे तो हेल्थ के लिए काफी फायदेमंद होता है, लेकिन क्या आपको पता है कि यह किसी बिल्डिंग को मजबूत बनाने और बेहतर फिनिशिंग देने के काम में भी आता है। दिल्ली के लोदी गार्डन में मौजूद एक ऐतिहासिक मस्जिद में दही का इस्तेमाल कर सैकड़ों साल पुरानी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए कारीगरों को राजस्थान के अलवर से विशेष तौर पर बुलाया गया है।




लोदी गार्डन जैसे दर्शनीय स्थल पर होने के बावजूद यह ऐतिहासिक मस्जिद दशकों से उपेक्षा का शिकार थी। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे इंटैक के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि पहले यह मॉन्यूमेंट बदतर स्थिति में था। आसपास के पेड़ों ने इसे अपने आगोश में ले लिया था और देखरेख न होने से इसकी हालत लगातार खराब होती जा रही थी। जब हमने इस पर चढ़ी गंदगी को हटाना शुरू किया, तो इस पर एक टी स्टॉल का नाम लिखा मिला। पता चला कि यहां करीब 20-25 सल पहले चाय की दुकान चला करती थी। बाद में और साफ किया तो पता चला कि इस मॉन्यूमेंट की पूरी दीवार कत्थई रंग की है। इंटैक के लिए काम कर रहे आर्ट कन्जर्वेशनिस्ट मणि कंडन ने बताया कि यह एक यूनीक कलर था और दिल्ली में आज तक किसी और मॉन्यूमेंट पर इस तरह का कलर देखने को नहीं मिला।



यह भी पता चला कि इसकी दीवारों पर अराइश तकनीक और फ्रेस्को स्टाइल का इस्तेमाल किया गया था। इस तकनीक से दीवारों पर इतनी पतली लेयर बन जाती है कि उसे स्पर्श करने पर लगता है, किसी संगमरमर को छू रहे हों। उन्होंने बताया कि आमतौर पर किसी भी मॉन्यूमेंट पर कन्जर्वेशन वर्क के लिए चूने को पानी में गलाया जाता है, लेकिन दीवार पर की गई अराइश तकनीक के इस्तेमाल के मद्देनजर चूने को दही में कम से कम छह महीने तक गलाना जरूरी होता है। पानी यह काम नहीं कर पाता। राजस्थान से आए कारीगर मोहम्मद अहमद खान के मुताबिक, चूना बहुत गर्म होता है और इसे बिल्कुल ठंडा करने के लिए दही में मिलाते हैं। इन दोनों के मिक्सचर को कई बार छाना जाता है और फिर मॉन्यूमेंट की दीवारों पर लगाया जाता है। उनका कहना है कि यह मिक्सचर बेहद पतला होने के कारण ही इतनी अच्छी फिनिशिंग दे पाता है। बसंत विहार में मौजूद बारा लाव के गुंबद पर भी इसी तकनीक का इस्तेमाल करके कन्जर्वेशन का काम किया जा रहा है।

कंडन के मुताबिक, दिल्ली में इतना स्पेशलाइज्ड काम करने वाले कारीगर नहीं मिल सकते। इस काम को करने के लिए विशेषज्ञों की जरूरत थी। इसी वजह से हमने राजस्थान के टोंक में मौजूद एक ऐतिहासिक मस्जिद में काम कर रहे कारीगरों को बुलाया था। कन्जर्वेशन के बाद यह मॉन्यूमेंट काफी मजबूत हो जाएगा और आने वाले कई दशकों तक तक पानी, धूल, मिट्टी इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।



दिल्ली सरकार का आर्कियॉलजी डिपार्टमेंट कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर इंटैक के साथ मिलकर दिल्ली के 14 मॉन्यूमेंट्स के कन्जर्वेशन का काम कर रहा है। दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह स्मारक भी इसी लिस्ट में शामिल है और इस पर पहली बार कन्जर्वेशन का काम किया जा रहा है। उनके मुताबिक , हमने पिछले महीने ही यहां काम शुरू किया था और जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट के तहत लोधी गार्डन में मौजूद दो अन्य मॉन्यूमेंट्स पर भी काम किया जा रहा है। खूबसूरत लोदी गार्डन में मुख्य तौर पर आठ ऐतिहासिक स्मारक हैं , जिनमें से 5 अन्य मॉन्यूमेंट्स आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास हैं।

अंग्रेजों के जमाने की बिल्डिंग हुई डैमेज

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली।। वैसे तो आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ( एएसआई ) कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर जगह - जगह कन्जर्वेशन का काम करवा रहा है , लेकिन लाल किले में किस कदर लापरवाही बरती जा रही है , अंग्रेजों के जमाने में बनी गई एक बिल्डिंग के मद्देनजर इसे आसानी से समझा जा सकता है। यहां मौजूद तीन मंजिला बिल्डिंग की तीसरी मंजिल का एक हिस्सा टूट गया है। हालांकि एएसआई अधिकारियों का कहना है कि यह बहुत बड़ी बात नहीं है। इन कॉलोनियल बिल्डिंग्स में कन्जर्वेशन का काम किया जा रहा है और इस दौरान ऐसे छोटे - मोटे हादसे हो जाते हैं।
असल में देश की आजादी से पहले लाल किले में अंग्रेजों ने आठ बिल्डिंगों का निर्माण कराया। लाल किले के नौबत खाने के बाईं ओर चार तीन मंजिला इमारत स्थित हैं। इन्हें बी -1, बी -2, बी -3 और बी -4 नाम दिया गया है। एएसआई काफी समय से इन बिल्डिंगों में कन्जर्वेशन का काम कर रहा है। इन बिल्डिंग्स में म्यूजियम खोलने की प्लानिंग है। साथ ही लाल किले की मुगलकालीन इमारतों में चल रहे म्यूजियमों को भी इन बिल्डिंगों में शिफ्ट करने की योजना थी।
बी -1 और बी -2 में कन्जर्वेशन का काम पूरा हो चुका है और फिलहाल बी -3 और बी -4 में रिपेयरिंग का काम किया जा रहा है। एएसआई सूत्रों का कहना है कि सोमवार रात बिल्डिंग बी -4 की तीसरी मंजिल का एक बड़ा हिस्सा नीचे गिर गया। इस फ्लोर पर मौजूद दो पिलर और तीन आर्च टूट गईं। इसका मलबा अब भी नीचे पड़ा है। हालांकि बिल्डिंग में अब भी कन्जर्वेशन का काम चल रहा है।
सूत्रों का कहना है कि कन्जर्वेशन में बरती जा रही लापरवाही के कारण बिल्डिंग का यह हिस्सा टूटकर गिरा है। उनका कहना है कि ये बिल्डिंगें सौ साल से भी ज्यादा समय से यहां खड़ी हैं। इस दौरान इन्होंने न जाने कितने तूफान झेले , लेकिन कुछ नहीं हुआ , तो फिर कन्जर्वेशन वर्क के दौरान ही अचानक यह कैसे गिर गईं।
दूसरी बात यह है कि किसी और बिल्डिंग के साथ ऐसी घटना क्यों नहीं हुई। एएसआई सूत्रों का कहना है कि एएसआई के लिए इनका काफी महत्व है। डिपार्टमेंट लाल किले में ही मौजूद सेना के समय में बनी बैरकों को तोड़ने वाला है और अगर उसके लिए ये इमारतें महत्वपूर्ण नहीं होतीं , तो वह यहां कन्जर्वेशन का काम क्यों करवाता।
हालांकि एएसआई अधिकारी इस घटना को बड़ी बात नहीं मानते। एक अधिकारी का कहना है कि यह बहुत पुरानी बिल्डिंग थी और इसका एक पिलर कमजोर था। इसी वजह से यह टूट गया। उनका कहना है कि हम इन बिल्डिंगों में कन्जर्वेशन का काम करवा रहे हैं और काम के दौरान छोटी - मोटी घटनाएं होती रहती हैं। एक अन्य एएसआई अधिकारी का कहना है कि बाद में इस हिस्से को फिर से खड़ा कर दिया जाएगा।
दिल्ली में मौजूद 174 मॉन्यूमेंट्स एएसआई के संरक्षण में हैं और वह कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर इनमें से 46 स्मारकों पर कन्जर्वेशन का काम करवा रहा है।

Sunday, June 6, 2010

एक ड्रीम...चाहिए वर्ल्ड हेरिटेज सिटी

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली।। दिल्ली को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा किस तरह दिलाया जाए, इसके लिए रोडमैप तैयार कर लिया गया है। रविवार को वर्ल्ड हेरिटेज डे के मौके पर इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) ने घोषणा की कि इसका ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है और छह महीने बाद सिफारिशों को अमली जामा पहनाने के बाद इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। शाहजहांनाबाद और लुटियंस बैंग्लो के कन्जर्वेशन विषय पर इंटैक द्वारा आयोजित दो दिन चले सेमिनार के समापन के मौके पर यह ड्राफ्ट तैयार किया गया।

इंटैक के सूत्रों के मुताबिक, ड्राफ्ट में कहा गया है कि शाहजहांनाबाद और लुटियंस जोन एरिया को संरक्षित घोषित किया जाना चाहिए। दिल्ली में मौजूद हर मॉन्यूमेंट के लिए बाउंड्री और उनकी डिजाइन तैयार की जानी चाहिए। साथ ही दिल्ली में पुरानी बिल्डिंगों के अलावा जो अन्य हेरिटेज जैसे नदी, तालाब आदि को संरक्षित करने के लिए भी अलग से कैटिगरी बनाई जाए। दिल्ली के इतिहास के बारे में लोगों को बताने के लिए म्यूजियम बनाए जाएं और मॉन्यूमेंट्स और अन्य हेरिटेज के बारे में मौजूद सारा मटीरियल आम लोगों के लिए डिस्प्ले किया जाए।
यह भी कहा गया है कि दिल्ली कैंट और सिविल लाइंस एरिया में आने वाली हेरिटेज बिल्डिंगों की लिस्टिंग तैयार की जाए। दिल्ली में के गांवों में मौजूद मॉन्यूमेंट्स की पहचान करके उनका रेकॉर्ड तैयार किया जाए।
ड्राफ्ट में इंटैक की भूमिका बताते हुए कहा गया है कि वह दिल्ली को र्वल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिलाने के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी डिपार्टमेंटों जैसे एएसआई, एमसीडी, एनडीएमसी, डीडीए, रेलवे आदि से सहयोग लेगा और उन पर एक प्रेशर गुप की तरह काम करेगा। सूत्रों का कहना है कि, इस मकसद को पूरा करने के लिए सरकारी डिपार्टमेंटों की मदद बहुत जरूरी है, क्योंकि अक्सर ऐसा होता है कि सरकारी डिपार्टमेंटों में आपसी खींचतान की वजह से मॉन्यूमेंट्स पर कंजवेर्शन का काम नहीं हो पाता।
इंटैक दिल्ली चेप्टर के संयोजक ए. जी. के. मेनन ने बताया कि दिल्ली को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिलाने की कोशिश में हम काफी समय से लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली को यह स्टेटस दिलाना आसान काम नहीं है और हम इसके लिए पूरी प्लानिंग के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
इस कॉन्फ्रेंस के बाद हमने वर्ल्ड हेरिटेज स्टेटस के लिए एक रोडमैप तैयार किया है। करीब छह महीने में सारी सिफारिशें तैयार कर लेंगे और इसके बाद इस बारे में केंद सरकार से बात करेंगे और हमें उम्मीद है कि हमें केंद की ओर से इस पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलेगा।

मुगलों की आरामगाह अब जुआरियों का अड्डा

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली ।। किसी जमाने में गर्मियों के वक्त मुगल शासकों के आराम की जगह रहा जहाज महल आज बदहाली के दौर से गुजर रहा है। किसी भी संरक्षित स्मारक के पास तहबाजारी नहीं की जा सकती, लेकिन इसके ठीक सामने मौजूद फुटपाथ पर कई सालों से बेरोकटोक दुकानें लग रही हैं। इन दुकानों के लिए सामान लाने वाले ट्रक भी स्मारक के अंदर खड़े होते हैं, जिससे यहां लगे लाल पत्थर टूट गए हैं। साथ ही, यह जुआरियों और असामाजिक तत्वों का डेरा बन गया है, जो यहां मौजूद (आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) एएसआई के कर्मचारियों को तक डराते-धमकाते हैं।

महरौली के मेन मार्केट से थोड़ा आगे निकलने पर दिखता है जहाज महल। ऐतिहासिक तालाब हौज-ए-शम्सी का पानी पहले इसे घेर लेता था। ऐसे में यह एक जहाज की तरह दिखता था, जिस पर इसका नाम जहाज महल पड़ा। अफगानिस्तान, ईरान, इराक समेत कई अन्य जगह से आने वाले विदेशी नागरिकों को भी यहीं ठहराया जाता था। गर्मियों के दौरान मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय और बहादुर शाह जफर यहां आकर रुकते थे।
अब यहां साल में एक बार 'फूलवालों की सैर' उत्सव के दौरान ही रौनक होती है, जब अलग-अलग राज्यों के कलाकार यहां परफॉर्म करते हैं लेकिन साल के बाकी दिन यहां जुआरी और शराबी कब्जा जमाए रहते हैं। इन लोगों को प्रशासन का कोई डर नहीं है। इससे उलट ये लोग यहां मौजूद एएसआई के कर्मचारियों को डराते-धमकाते भी हैं।
जहाज महल की बाउंड्री से सटे फुटपाथ पर कई सालों से मसालों, सब्जियों की दुकान लगती हैं, जो कि गैरकानूनी हैं। 'फूलवालों की सैर' का आयोजन करने वाली कमिटी की अध्यक्ष ऊषा कुमार बताती हैं कि कई सालों से फुटपाथ पर लग रही इन दुकानों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। उनका कहना है कि इन दुकान वालों के लिए सामान लाने वाले ट्रक जहाज महल परिसर में खड़े किए जाते हैं, जिससे लाल पत्थरों से बना फर्श पूरी तरह से टूट गया है। पहले तो 'फूलवालों की सैर' के दौरान इसे ठीक कर दिया जाता था, लेकिन अब इस ओर कोई ध्यान नहीं देता।
एएसआई अधिकारियों का कहना है कि इस तरह के मामलों में वह केवल संबंधित डिपार्टमेंट से शिकायत कर सकते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। जब यह दुकानें जहाज महल के पास लगना शुरू हुई थीं, तभी उसने एमसीडी के अधिकारियों से इसकी शिकायत की थी, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया।

Sunday, May 2, 2010

मैप देखो, ड्रॉइंग देखो... दिल्ली की स्टोरी देखो

रीतेश पुरोहित

नई दिल्ली।। कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दिल्ली के लोगों और टूरिस्टों को मैप्स, ड्रॉइंग, फोटो और लेखों के जरिए इस शहर के हजारों साल पुराने इतिहास से लेकर मास्टर प्लान 2021 तक इसके विकास की कहानी सुनाई जाएगी। दिल्ली अर्बन आर्ट्स कमिशन (डीयूएसी) इसके लिए तीन जगह दिल्ली की मैपिंग पर यह एग्जिबिशन लगाएगा। 27 सितंबर से शुरू होने वाली यह एग्जिबिशन गेम्स खत्म होने के एक हफ्ते बाद तक लगी रहेगी और इसमें एंट्री फ्री होगी। एग्जिबिशन में बताई जाने वाली सारी इन्फर्मेशन, मैपिंग और ड्राइंग को एक किताब में भी समेटा जा रहा है।
डीयूएसी चेयरमैन प्रफेसर के. टी. रविंद्रन ने बताया कि यह एग्जिबिशन मुख्य तौर पर दिल्ली के लोगों और यहां आने वालों के लिए लगाई जा रही है। दिल्ली बहुत बड़ा शहर है, लेकिन लोग कई जगहों के बारे में नहीं जानते। इसी वजह से गेम्स के दौरान दिल्ली से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए हम लालकिला, डीयू (नॉर्थ कैंपस) और इंडियन हैबिटैट सेंटर में एग्जिबिशन लगा रहे हैं।
यह पहली बार है जब किसी एग्जिबिशन में दिल्ली के बारे में इतने विस्तार से बताया जाएगा और इतने सारे मैप, ड्रॉइंग्स और फोटो का यूज किया जाएगा। इसमें ऐसे कई दुर्लभ मैप, ड्रॉइंग्स और डॉक्यूमेंट्स होंगे, जिनके बारे में अब तक बहुत कम लोगों को पता होगा।
उन्होंने बताया कि इसके लिए हम पिछले साल से तैयारी कर रहे थे। केंद्र सरकार ने इस एग्जिबिशन के लिए हमें काफी सहयोग दिया। एएसआई, डीडीए, एमसीडी और दूसरे सरकारी विभागों ने कई महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध कराई है।
डीयू और इंडिया हैबिटेट सेंटर में यह एग्जिबिशन लगाने की परमीशन मिल गई है और लालकिले के लिए भी हमें जल्द ही एएसआई से परमीशन मिलने की उम्मीद है। एग्जिबिशन हिंदी और इंग्लिश दोनों में होगी। इंग्लिश में मौजूद सामग्री का हिंदी में ट्रांसलेशन किया जाएगा।
रविंद्रन ने बताया कि गेम्स के एक हफ्ते पहले से लोगों का दिल्ली में पहुंचना शुरू हो जाएगा, इसलिए हमने इसकी शुरुआत के लिए यह वक्त चुना है। दिल्ली में ऐसे बहुत से लोग होंगे, जो गेम्स की तैयारियों में जुटे होंगे। ऐसे लोगों को ध्यान में रखते हुए ही एग्जिबिशन गेम्स खत्म होने के एक सप्ताह बाद तक चलेगी।
एग्जिबिशन में मौजूद सारी इन्फर्मेशन को एक साथ लाने के लिए हम हिंदी और इंग्लिश में एक किताब तैयार कर रहे हैं, जिसे इस कार्यक्रम के दौरान ही लॉन्च किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि यह एग्जिबिशन बहुत बड़े स्तर पर लगाई जाएगी, ऐसे में इसे हटाने में बहुत परेशानी आएगी। हम तो इसे स्थायी तौर पर लगाना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास इसके लिए जगह नहीं है। अगर हमें डिपार्टमेंट या संस्था इसके लिए कोई स्थायी जगह उपलब्ध कराए, तो यह बहुत अच्छा कदम होगा।

Monday, April 19, 2010

पुरातत्व : सिर्फ कानून बनाने से क्या होगा

रीतेश पुरोहित

29 march 2010
नई दिल्ली।। 16 मार्च 2010 को संसद ने द एनशिएंट मॉन्यूमेंट्स ऐंड आर्कियॉलजिकल साइट्स ऐंड रिमेन्स (अमेंडमेंट ऐंड वेलिडेशन) ऐक्ट पास कर दिया। इसके साथ ही कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े कुछ प्रोजेक्टों को पूरी तरह कानूनी मान्यता मिल गई। 1958 के ऐक्ट से तुलना करें, तो नए कानून को पहले से कहीं ज्यादा कड़ा किया गया है। एक्सपर्ट्स इसे अच्छा कदम मानते हैं, लेकिन उनका कहना है कि इससे तभी फायदा होगा, जब इन नियमों का सख्ती से पालन हो।
क्या है नए ऐक्ट में
नए ऐक्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी का गठन करेगी। यह कमिटी किसी संरक्षित स्मारक या क्षेत्र के महत्व को सामने लाने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करेगी। ग्रेडिंग से यह पता चल सकेगा कि संबंधित स्मारक का क्या महत्व है। अथॉरिटी यह सुझाव भी देगी कि इस ऐक्ट के नियमों को किस तरह लागू किया जा सकता है। साथ ही इस बात पर भी ध्यान देगी कि रेग्युलेटेड एरिया (संरक्षित स्मारक के 300 मीटर के दायरे) में प्रस्तावित डिवेलपमेंट प्रोजेक्टों से संबंधित स्मारक पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कुछ मायनों में इस अथॉरिटी को सिविल कोर्ट की तरह पावर दी गई है। जैसे अथॉरिटी को इस बात का अधिकार होगा कि वह किसी भी व्यक्ति को बयान देने, किसी कागजात को अपने सामने पेश करने के लिए बुला सके।
इस ऐक्ट में बताया गया है कि किसी पुरातत्व अधिकारी के अलावा कोई भी संरक्षित स्मारक या एरिया के 100 मीटर के दायरे (प्रतिबंधित क्षेत्र) में निर्माण या खुदाई का काम नहीं कर सकता। हालांकि अगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) को यह लगता है कि सार्वजनिक उपयोग के लिए इस दायरे में कोई प्रोजेक्ट या डिवेलपमेंट वर्क जरूरी है, तो वह इसके लिए अपनी अनुमति दे सकता है। हालांकि यह साबित होना जरूरी है कि इस प्रोजेक्ट या वर्क से संबंधित स्मारक को कोई अगर कोई व्यक्ति किसी संरक्षित इमारत के 300 मीटर के दायरे यानी नियंत्रित क्षेत्र में निर्माण कार्य करना चाहता है तो उसे इसके लिए उसे एएसआई के संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
नए ऐक्ट में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी की सिफारिश पर किसी भी स्मारक के प्रतिबंधित और नियंत्रित क्षेत्र को बढ़ा सकती है।
एएसआई को किसी एक्सपर्ट हेरिटेज बॉडी के साथ मिलकर हर संरक्षित स्मारक के लिए अलग से हेरिटेज उपनियम (बाई-लॉज ) बनाने होंगे।
अगर कोई व्यक्ति किसी भी संरक्षित स्मारक के नियंत्रित क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण कार्य करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे दी जाने वाली अधिकतम सजा तीन महीने से बढ़ाकर दो साल कर दी गई है, जबकि जुर्माने की रकम को पांच हजार से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है।

अगर यह बात साबित होती है कि केंद्र सरकार के किसी अधिकारी की सहमति से प्रतिबंधित या नियंत्रित क्षेत्र में गैरकानूनी तरीके से निर्माण, पुननिर्माण या मरम्मत का काम चल रहा है तो उसे तीन साल तक की कैद या जुर्माना किया जा सकता है।

विशेषज्ञ की राय
दिल्ली हाई कोर्ट की सीनियर वकील और हेरिटेज ऐंड कल्चरल फोरम की अध्यक्ष ऊषा कुमार कहती हैं कि यह नया ऐक्ट काफी अच्छा है। नियम काफी सख्त किए गए हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐतिहासिक स्मारकों से संबंधित कानूनों की रोज धज्जियां उड़ती हैं। हर संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में रातों-रात बहुमंजिला इमारत खड़ी हो जाती हैं, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। सरकारी अधिकारी आंखें मूंदे रहते हैं या फिर उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव है। किसी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण कार्य न करने का नियम 1992 से लागू है, लेकिन साउथ दिल्ली में ऐसे कितने ही मकान और बिल्डिंगें हैं, जो 1992 के बाद बनीं और वे किसी न किसी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में आती थीं। साउथ दिल्ली में ही मौजूद सराय शाहजी और बेगमपुरी मस्जिद की हालत देखिए। हाई कोर्ट ने कितनी ही बार एएसआई से इनके आसपास मौजूद अतिक्रमण हटाने को कहा है, लेकिन आज तक आदेश का पालन नहीं हुआ।
पहले इस बात पर विवाद होता था कि किसी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर और इससे आगे 200 मीटर के दायरे को कहां से नापा जाए। सरकारी अधिकारी अपनी मजीर् के मुताबिक और फायदे के लिए, हेरिटेज साइट की किसी भी जगह से 100 मीटर की दूरी तय कर देते थे, लेकिन नए ऐक्ट में इसे साफ किया गया है। नए ऐक्ट के मुताबिक, नोटिफिकेशन में संरक्षित स्मारक की जहां से शुरुआत का उल्लेख है, वहीं से उसका नियंत्रित एरिया माना जाएगा। इस नए प्रावधान इससे आम लोगों को फायदा होगा।
नए ऐक्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े कुछ प्रोजेक्टों समेत कई और निर्माणों को मान्यता दी गई है, जो तत्कालीन कानून के मुताबिक गैरकानूनी थे। इसका मतलब यह हुआ कि जिन लोगों ने कानून का पालन करते हुए संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं किया, उन्होंने बहुत बड़ी गलती की? सरकार ने कानून मानने वाले लोगों के साथ धोखा किया।

अब एएसआई को 3 महीने और 15 दिन में यह फैसला करना होगा कि नियंत्रित क्षेत्र में मौजूद इमारत में निर्माण की अनुमति दी जाए या नहीं। साथ ही अगर अनुमति देने के बाद एएसआई को लगता है कि संबंधित निर्माण की वजह से स्मारक पर किसी तरह का असर पड़ सकता है या नुकसान पहुंच सकता है, तो वह अनुमति रद्द कर सकता है। पुराने ऐक्ट में यह प्रावधान नहीं था।
नए कानून के सेक्शन 20-एन(1) में केंद सरकार को यह पावर दी गई है कि वह कुछ विशेष परिस्थितियों में नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी को हटा (सुपरसीड) सकती है।
नए ऐक्ट में एक खामी है। एएसआई को अभी कोई अतिक्रमण हटाओ दस्ता बनाने का अधिकार नहीं दिया गया है, जिसके जरिए वह संरक्षित इमारत के प्रतिबंधित क्षेत्र में हो रहे निर्माण को रुकवा सके या अतिक्रमण को हटा सके। एएसआई को इसके लिए अब भी पुलिस पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। अवैध निर्माण के लिए सजा और जुर्माने को बढ़ाया गया है, लेकिन अब भी इस बात की संभावना बेहद कम है कि किसी को यह सजा दी जाएगी।

नया कानून क्यों
पुराने ऐक्ट के तहत कोई भी किसी भी स्थिति में स्मारक के 100 मीटर के दायरे में निर्माण की इजाजत नहीं थी, लेकिन एएसआई की विशेषज्ञ सलाहकार कमिटी ने कॉमनवेल्थ गेम्स के प्रोजेक्टों समेत कई निर्माणों को अपनी अनुमति दे दी थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस कमिटी को गैरकानूनी करार दिया था और एएसआई को आदेश दिया था कि वह तुरंत इन सभी जगहों पर चल रहे निर्माण को तुरंत रुकवाए। ऐसे में दिल्ली में चल रहे गेम्स के कुछ प्रोजेक्ट पर तलवार लटक गई थी। इसके बाद सरकार ने कानून में संशोधन का मन बनाया। हालांकि उस वक्त संसद सत्र नहीं चल रहा था, इसलिए गेम्स प्रोजेक्टों पर लगी रोक हटाने के लिए आनन-फानन में अध्यादेश लाया गया और अब संसद के मौजूदा सत्र में बिल को पेश कर कानूनी शक्ल दे दी गई है।

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5736557.cms?prtpage=1

bhagvan kalbhairav ka anokha mandir

रीतेश पुरोहित


मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन को मंदिरों का शहर कहा जाता है। महाकालेश्वर की नगरी के साथ-साथ इसका ऐतिहासिक महत्व होने के कारण इस शहर में कई दर्जनों मंदिर हैं। वैसे तो काफी लोग यहां भगवान महाकाल के दर्शन करने आते हैं, लेकिन कालभैरव के मंदिर का यहां अपना ही महत्व है। यह मंदिर शहर से करीब आठ किलोमीटर दूर भैरवगढ़ नाम की जगह पर मौजूद है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। ऐसे में उज्जैन जाने पर इस मंदिर में आपके न जाने से सकता है कि आपको महाकाल के दर्शन का आधा ही लाभ मिले।
दिलचस्प बात यह है कि भगवान कालभैरव की मूर्ति पर प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है और शराब से भरे हुए प्याले को मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाता है। मंदिर के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की आठ से दस दुकानें लगी हैं। खास बात यह है कि इन दुकानों में लाइसेंस न होने की वजह से विदेशी ब्रैंड की शराब नहीं मिलती। वैसे, ये शहर से आपके लिए विदेशी शराब मंगवा जरूर सकते हैं।
मंदिर में शराब चढ़ाने की गाथा भी बेहद दिलचस्प है। यहां के पुजारी बताते हैं कि स्कंद पुराण में इस जगह और इसके धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार चारों वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। लेकिन ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवा मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्मा हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की और उन्होंने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है और धीरे-धीरे यहां एक बड़ा मंदिर बन चुका है। वैसे, इसका जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।
रात दस बजे तक खुले रहने वाले इस मंदिर में रोजाना 200 से 250 क्वॉटर शराब चढ़ाई जाती है। इसकी वजह है कि कालभैरव की तामसिक पूजा। हालांकि, पहले यह मांस, मछली, मदिरा, मुदा और मैथुन के प्रसाद से पूरी होती थी, लेकिन अब चढ़ावा बस शराब तक सीमित रह गया है। मूर्ति को पिलाई जाने वाली यह शराब आखिरकार चली कहां जाती है, यह अपने-आप में एक अबूझ सवाल है। लोगों की मानें, तो यह सारी शराब भगवान की मूर्ति पीती है, लेकिन इसका पता लगाने के लिए 2001 में मंदिर के आस-पास हुई खुदाई में मिट्टी में शराब की मौजूदगी नहीं पाई गई।

ऑफिस में टाइम पास, नहीं है राइट चॉइस

रीतेश पुरोहित

5 jan 2009
नई दिल्ली : 23 साल के सॉफ्टवेयर एंजीनियर अनुराग त्रिपाठी अविवाहित हैं। रात के 8 बजे हैं और वह अभी तक ऑफिस में कंप्यूटर के सामने बैठे हैं। पिछले तीन घंटे में वह पांच बार कॉफी पी चुके हैं। दर्जनों दोस्तों के मोबाइल घनघना चुके हैं। अनुराग इसकी वजह बताते हुए कहते हैं 'घर जाकर भी मैं क्या करूंगा। यहां सब कुछ है। कंप्यूटर, कॉफी, फ्री का फोन, एसी। मैं यहां अपने मन का काम कर सकता हूं।' कई सॉफ्टवेयर कंपनियों और रिसर्च सेंटरों में इस तरह का नजारा आम है। यहां अविवाहित युवक अपनी कंपनी में देर रात तक टाइम पास करते रहते हैं क्योंकि उनके पास करने के लिए कुछ और नहीं होता। हालांकि एच. आर. (ह्यूमन रिसॉर्स) से जुड़े लोग इसे सही नहीं मानते।
सॉफ्टवेयर कंपनी क्रीडेंस सिस्टम्स में मैनिजर (एच.आर.) गौरव सिंह चौहान कहते हैं कि आजकल कंपनियां खुद ही कर्मचारियों की फ्रीडम की बात करती हैं। पर्सनल यूज के लिए कंपनी का सामान इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन देर रात तक ऑफिस में बैठे रहने से वर्क कल्चर पर बुरा असर पड़ता है। ऑफिस में देर तक बैठे देखकर बॉस की उम्मीदें आपसे काफी बढ़ जाती हैं। वह आपको अधिक काम देने लगते हैं और ऑफिस के दूसरे लोगों से ओवरटाइम की उम्मीद करते हैं। चौहान का कहना है कि जब तक आप अनमैरिड हैं तब तक तो यह ठीक लगता है लेकिन शादी के बाद परिवार आपकी प्राथमिकता में शुमार हो जाता है और आप ऑफिस में ज्यादा समय नहीं दे पाते। इसके बाद बॉस की नजरों में भी आपकी इमिज खराब हो जाती है।
होम फर्निशिंग एक्सपोर्ट कंपनी में एच. आर. इगेक्युटिव नितिन सिंह भी इन बातों से सहमत हैं। उनका कहना है कि इन युवा प्रफेशनल्स को ऑफिस में देर रात तक रुकने के बजाय कुछ और करना चाहिए। जैसे वह डांस सीखें, कोई नई भाषा सीखें। अपना पसंदीदा गेम खेलें। करीबियों को वक्त दें। उनका कहना है कि हममें से कई लोग सोचते हैं कि देर रात तक काम करने का मतलब होता है, कड़ी मेहनत करना या फुल कमिटमेंट देना। हालांकि ऐसा नहीं है। लोगों को समझना चाहिए कि ऐसा करके वह अपना समय ही खराब कर रहे हैं।
मैक्स हेल्थकेयर में सायकायट्रिस्ट समीर पारिख कहते हैं कि काफी युवा प्रफेशनल पूरी तरह ऑर्गेनाइज्ड नहीं होते। वह परिवार से दूर रहते हैं। कई बार ऑफिस में उनकी कुछ लोगों से अच्छी दोस्ती हो जाती है, इसलिए भी वह ऑफिस में रुकना और हंसी ठिठोली करना पसंद करते हैं। उनका कहना है कि लोग कई बार मनोरंजन के लिए ऑफिस में बैठते हैं लेकिन यह तनाव कम करने में किसी तरह की मदद नहीं करता। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने बॉस को यह जताना चाहते हैं कि वह ऑफिस में बहुत ज्यादा काम करते हैं।

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175 साल बाद भी वही महक 'फूल वालों की सैर' में

रीतेश पुरोहित

9 oct 2009
नई दिल्ली।। मुगल शासक अकबर शाह की बेगम जीनत महल जब अपनी मन्नत पूरी होने पर महरौली स्थित ख्वाजा बख्तियार काकी की मजार के लिए अपने किले से निकली थीं, तो दिल्ली वाले बेहद गर्मजोशी के साथ इस काफिले में शामिल हुए थे। 'फूल वालों की सैर' नाम से मशहूर हुए इस काफिले को बाद में त्योहार की तरह मनाया जाने लगा। आज करीब 175 साल बाद भी ख्वाजा की दरगाह पर ऐसी ही गर्मजोशी देखी जा सकती है। हर धर्म के लोग मजार पर मत्था टेकने आ रहे हैं और ख्वाजा से दुआएं मांग रहे हैं। हर साल सितंबर-अक्टूबर के महीने में मनाए जाने वाले इस मेले की गुरुवार को शुरुआत हो गई है और शनिवार को मजार से कुछ दूरी पर स्थित जहाज महल में रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
असल में मुगल शासक अकबर शाह अपने दूसरे बेटे मिर्जा जहांगीर को शाही वारिस बनाना चाहते थे, लेकिन अंग्रेजों को यह मंजूर नहीं था। इससे नाराज होकर मिर्जा ने अंग्रेज अधिकारी सीटन को बुरा-भला कह दिया। गुस्साए अंग्रेजों ने शहजादे को इलाहाबाद के किले में नजरबंद कर दिया। मिर्जा की मां जीनत महल ने इससे बेहद परेशान हो गईं। कई कोशिशें करने के बाद अंत में उन्होंने महरौली में ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार पर अपने बेटे की वापसी और बदले में मजार पर फूलों की चादर और मसहरी चढ़ाने की मन्नत मांगी। आखिरकार ख्वाजा ने उनकी सुन ली।
शहजादे को रिहा कर दिया गया और दिल्ली लौटने की इजाजत भी दे दी। बेगम मन्नत पूरी होने पर जोरशोर से और हाथी-घोड़ों के काफिले के साथ-साथ महरौली की और चल पड़ीं। इस काफिले में फूलवाले भी थे, जो अपने हाथों से गढ़ी चादरों ओर पंखों को लेकर सारी दिल्ली को महकाते हुए चल रहे थे। इसी वजह से काफिले को 'फूल वालों की सैर' नाम दिया गया। हिंदू जनता ने भी अपनी खुशी का इजहार करते हुए पास ही स्थित योगमाया मंदि में छत्र और पोशाक चढ़ाई।
इस दौरान बादशाह इस पूरे माहौल से खूब खुश हुए और उन्होंने इसे एक त्योहार का नाम दे दिया। अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर के शासनकाल में यह त्योहार अपने चरम पर पहुंच गया। हालांकि बाद में अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने की नीति के तहत इस मेले को बंद करा दिया। 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा से इस मेले को नया जीवन मिला। तब से यह मेला हर साल अंजुमन सैर-ए-गुलफरोशां की देखरेख में यहां लगता है।
गुरुवार को उपराज्यपाल ने भारी सिक्यूरिटी के बीच मजार पर चादर चढ़ाई। तीन दिनी इस मेले में शुक्रवार को परंपरा के मुताबिक महरौली के ऐतिहासिक योगमाया मंदिर में फूलों का छत्र चढ़ाया जाएगा। दोपहर को कबड्डी, पतंगबाजी, दंगल, और कुश्ती कार्यक्रम होंगे। शनिवार को मुख्य समारोह के तहत रंगारंग कार्यक्रमों और पंखों का प्रदर्शन होगा और कव्वालियों का दिलकश कार्यक्रम होगा।

एनसीआर के स्लमों में हैं कई 'जमाल'

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली ।। आठ ऑस्कर अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म स्लमडॉग मिलिनेअर में स्लम में रहने वाले एक बच्चे को करोड़पति बनते हुए दिखाया गया है। रीयल लाइफ में भी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले कई बच्चे बड़ा आदमी बनने के सपने को हकीकत में बदलने के लिए जी-जान से जुटे हैं। एनसीआर के पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे ये बच्चे बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भी संपन्न घरों के बच्चों को पछाड़कर अव्वल आ रहे हैं। ये बच्चे बड़े होकर अपने जैसे ही गरीब बच्चों को पढ़ाकर एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं। काफी सारे बच्चों का कहना है कि उन्हें मौका मिले तो वे भी कमाल कर सकते हैं।
निजामुद्दीन ब्रिज के पास यमुना से सटी झुग्गी बस्ती में रहने वाला 18 साल का विवेकानंद बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से अपने पैरंट्स के साथ यहां आया था। घर में कमाने वाला केवल बड़ा भाई है, जो पेंटर है। विवेकानंद पहले यमुना में लोगों के फेंके गए सिक्के बीनने का काम करता था। कई सालों तक वह स्कूल नहीं जा पाया लेकिन बाद में एक एनजीओ 'राहुल मल्टी डिसिप्लनरी रिसर्च सेंटर' की मदद से उसने धीरे-धीरे पढ़ना सीखा। अब वह पंढारा रोड स्थित एक स्कूल में अपनी क्लास में अव्वल है। उसने कड़कड़ाती ठंड में स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई की है। विवेकानंद ने दोस्तों से स्लमडॉग मिलिनेअर के बारे में सुना। वह कहता है कि जिस तरह फिल्म में एक स्लम में रहने वाला जमाल इतना पॉपुलर हो जाता है, उसी तरह मैं भी खूब पढ़-लिखकर नाम कमाना चाहता हूं।
इंदिरा पुरम, गाजियाबाद में डीपीएस स्कूल के पास स्थित स्लम बस्ती में रहने वाली 13 साल की शिखा प्राइमरी स्कूल में तीसरी क्लास तक पढ़ाई करने के बाद कुछ सोशल वर्कर्स का साथ पाकर एक पब्लिक स्कूल में एडमिशन लेने पहुंची। स्कूल के प्रिंसिपल ने शिखा को चौथी क्लास में एडमिशन देने से मना करते हुए उसका नाम तीसरी क्लास में ही लिखने पर जोर दिया। शिखा ने इसे एक चैलेंज की तरह लिया। अब वह छठवीं क्लास में है और पांचवीं में 83 पसेर्ंट नंबर पाकर वह स्कूल टॉपर रही। शिखा के पिता भी उसे पढ़ाना नहीं चाहते थे।
शिखा के स्कूल में ही सातवीं क्लास में पढ़ने वाले संजीत दास की कहानी भी ऐसी ही है। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं और मां घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं। संजीत ने स्लमडॉग मिलियनेयर देखी है और फिल्म को ऑस्कर मिलने से वह बहुत खुश है। फिल्म में जमाल की भूमिका निभाने वाले देव पटेल का रोल उसे बहुत पसंद आया। संजीत कहता है कि एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले किसी लड़के को करोड़पति बनते देखना वाकई में काफी रोमांचकारी है। यह फिल्म स्लम में रहने वाले सभी बच्चों के लिए एक आस बंधाती है।
सोमवार को ही एनजीओ 'चेतना' ने झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों को यह फिल्म दिखाई। कीतिर् नगर के कमला नेहरू कैंप में रहने वाले श्रवण का कहना है कि यह फिल्म उनके जैसे बच्चों की सही तस्वीर सामने लाती है। कढ़ाई के काम में जुटे 16 साल के विजय के मुताबिक इस तरह की और भी फिल्में बननी चाहिए, ताकि लोगों को हमारे मुश्किल जिंदगी के बारे में पता चल सके।
 
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वेलकम करेंगे दिल्ली के 7 ऐतिहासिक शहर

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली।। अगले साल होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दिल्ली अपने मॉडर्न रूप के साथ साथ सदियों पुराना इतिहास दिखाने के लिए भी तैयार हो रही है। गेम्स के दौरान आने वाले विदेशी टूरिस्टों को यहां के इतिहास की झलक दिखाने के लिए आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने 46 स्मारकों को चुना है। एएसआई के सुपरिंटेंडेंट आर्कियॉलजिस्ट के. के. मोहम्मद ने बताया कि 25 करोड़ रुपये के बजट से इन धरोहरों को अगले साल अगस्त तक संरक्षित करने और खूबसूरत बनाने का काम पूरा कर लिया जाएगा। इन सभी जगहों पर काम जोरों पर चल रहा है।
जिन 46 स्मारकों को चुना गया है उनमें दिल्ली के सात शहरों के नाम से मशहूर किला राय पिथौरा, सीरी, तुगलकाबाद, जहांपनाह, कोटला फिरोज शाह, पुराना किला और शाहजहांनाबाद शामिल हैं। इनके अलावा हुमायूं का मकबरा, अरब की सराय, सफदरजंग का मकबरा, कश्मीरी गेट और दरियागंज की वॉल्ड सिटी, जंतर-मंतर कॉम्पलेक्स और दिल्ली गेट कुछ खास नाम हैं। मोहम्मद ने बताया कि इन स्मारकों को चुनने में हमने कई बातों का ध्यान रखा, मसलन वह कितने साल पुराना है, उसका ऐतिहासिक महत्व क्या है। इसके अलावा यह भी देखा गया कि इमारत की अभी क्या हालत है और वह कितना पॉप्युलर है। वहां जाना आसान है या नहीं।
उन्होंने बताया कि इन सभी जगहों पर काम लगातार किया जा रहा है और उम्मीद है कि अगले साल अगस्त तक इसे पूरा कर लिया जाएगा। इसके अलावा एएसआई इंटैक (इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चरल हेरिटेज) के साथ लोदी गार्डन पर मौजूद पांच स्मारकों को दुरुस्त करने का काम कर रहा है। इनमें से एक पर काम पूरा हो गया है, जबकि बाकी पर काम जारी है।

कैसे लौटेगी खूबसूरती
इन सभी स्थानों पर किए जाने वाले काम को पांच हिस्सों में बांटा गया है।
1. मरम्मत का काम
टूटी-फूटी इमारतों पर कंस्ट्रक्शन का काम करके उन्हें पुराना लुक देने की कोशिश की जा रही है। अगर किसी छत से पानी टपक रहा है, तो उसे वॉटर टाइटनिंग के जरिए ठीक किया जा रहा है। दीवारों के बीच बने जॉइंट्स को भरने और उखड़ी हुई दीवारों पर प्लास्टरिंग करने का काम हो रहे हैं। इस पूरे काम में करीब 8.50 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।

2. जरूरी सुविधाएं
न सिर्फ स्मारकों, बल्कि उसके पूरे परिसर को अच्छा लुक देने का काम किया जा रहा है। इसके तहत परिसर के रास्तों को दुरुस्त करना, रेलिंग और बाउंड्री वॉल की मरम्मत व कलर करना, इंटरनैशनल स्तर के टॉयलेट बनाना, पीने के पानी की व्यवस्था करना, पब्लिकेशन काउंटर बनाना और नए साइनेज लगाने का काम शामिल है। एएसआई का दिल्ली सर्कल इस पूरे काम को अंजाम देगा। अनुमान है कि इस काम में 6.31 करोड़ रुपये लगेंगे।

3. केमिकल ट्रीटमेंट
इमारत पर जम गई गंदगी को दूर करने और इस पर लिखे नाम को हटाने के लिए केमिकल ट्रीटमेंट का सहारा लिया जा रहा है। 9.20 करोड़ रुपये की लागत से पूरे होने वाले इस काम के तहत एक खास केमिकल का इस्तेमाल करके दीवारें साफ की जा रही हैं। एएसआई की साइंस ब्रांच यह काम कर रही है।
4. होगा हरा भरा
आसपास की जगहों पर घास बिछाई जा रही है। साथ ही पौधे भी लगाए जा रहे हैं। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट इसकी जिम्मेदारी संभालेगा। इस काम में करीब 5.17 करोड़ रुपये लगेंगे।
5. रोशनी की व्यवस्था
रात में भी स्मारक खूबसूरत नजर आएं, इसके लिए अंदर व बाहर लाइटिंग का काम किया जा रहा है। इससे ये ऐतिहासिक इमारतें और सुंदर नजर आएंगी। भारत सरकार का टूरिजम डिपार्टमेंट इस काम को पूरा करेगा। करीब 4.85 करोड़ रुपये की लागत से यह काम होगा।

पार्क जमाली-कमाली : खूबसूरत और खाली

रीतेश पुरोहित।। कुतुब मीनार परिसर से करीब 100 मीटर दूर स्थित यह पार्क लगभग 200 एकड़ में फैला हुआ है और


यहां कुल 80 स्मारक हैं। वैसे यह जमाली कमाली पार्क के नाम से भी मशहूर है। अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य वाली इस जगह पर आकर आप इतिहास से सीधे रूबरू हो सकेंगे। इन स्मारकों के बीच आकर लगता है कि मानो हम अतीत के उस सुनहरे दौर में पहुंच गए हों। इन स्मारकों को देखने के बाद आप बिना इनकी तारीफ किए नहीं रह पाएंगे। माना कि यहां के स्मारक कुतुब मीनार की तरह नहीं हैं, लेकिन यह किसी से कम भी नहीं हैं।



करीब एक हजार साल की विरासत के गवाह इस स्थान पर काफी सालों पहले डीडीए और इंटैक (इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) ने संरक्षण का काम शुरू किया था। यहां फूल मार्किट के पीछे जाने पर सबसे पहले मुगल काल का बना कुआं आपका स्वागत करेगा। इसके आगे गुलाबों की बहुत बड़ी और खूबसूरत बगिया है। इसके आगे दो और बहुत सुंदर बागीचे हैं। यहां बैठने के लिए कई बेंच लगी हुई हैं और स्टूल भी। यहीं से कुछ ऊंचाई पर मैटकॉफ की छतरी है। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में भारत के प्रशासक रहे चार्ल्स मैटकॉफ की यह छतरी ऊंचाई पर होने के कारण काफी सुंदर दिखाई देती है। इससे कुछ ही आगे जाने पर जमाली और कमाली का मकबरा है। जमाली उर्फ शेख फजलुल्लाह एक संत और कवि थे। इस मकबरे का निर्माण 1528-29 में शुरू हुआ था, लेकिन हुमायूं के शासन के दौरान पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। आगे जाने पर बलवन का मकबरा है, जो 16-17 शताब्दी में बना था। इनके अलावा अन्य स्मारकों में मैटकॉफ का ब्रिज और बोट हाउस, कुली खां का मकबरा, लोधी काल का गेटवे, मुगल काल के मकबरे, राजाओं की बावली प्रमुख हैं।



इस पार्क के बारे में दिल्ली के बहुत सारे लोगों को जानकारी नहीं है। इस वजह से यहां काफी कम ही लोग मौजूद होते हैं। हालांकि पार्क के पास सड़क है, लेकिन इसके काफी बड़ा होने से यहां कोई शोरशराबा नहीं होता। यह पार्क सुबह से लेकर शाम तक खुला रहता है। कोई एंट्री फीस नहीं है और कितनी ही देर तक बैठने पर भी कोई रोकटोक नहीं है। हालांकि खाने-पीने का सामान आपको कुतुबमीनार से ही लाना होगा, क्योंकि यहां आसपास कोई दुकान वाला नहीं है। यहां मौजूद कुछ स्मारकों के केवल अवशेष ही बचे हैं। यदि इस पूरे क्षेत्र का संरक्षण पहले हो चुका होता तो शायद यह जगह और भी खूबसूरत होती। बहरहाल, इस वैलंटाइंस और वीक एंड को कुछ खास बनाने के लिए यह एकदम सही जगह हो सकती है।
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हिस्ट्री और फ्यूचर के बीच लटकी पार्किन्ग

रीतेश पुरोहित


नई दिल्ली।। एएसआई के करीब 50 साल पुराने कानून को बदल कर सरकार ने कॉमनवेल्थ गेम्

स से जुड़े प्रोजेक्टों को फौरी राहत दे दी है। लेकिन बहादुरशाह जफर मार्ग पर अंडरग्राउंड मल्टिलेवल पार्किन्ग बनाने का एमसीडी का प्रोजेक्ट अब भी लटका है। आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) का कहना है कि पार्किन्ग की प्रस्तावित जगह को आर्कियॉलजी के नजरिए से इन्वेस्टिगेट करने की जरूरत है। एमसीडी को जीपीआर (ग्राउंड पेनिटरेटिंग रेडार) सवेर् करके बताना होगा कि साइट की जगह पर उस जमाने का कोई ऐतिहासिक स्ट्रक्चर तो मौजूद नहीं हैं।



कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े प्रोजेक्टों को कानूनी अड़चनों से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में अध्यादेश लाकर 1958 के ऐक्ट में संशोधन किया था। पिछले साल दिसंबर में हाई कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए एएसआई को आदेश दिया था कि किसी भी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में हो रहे हर कंस्ट्रक्शन को तुरंत रोके। कोर्ट ने स्मारक के प्रतिबंधित दायरे में कंस्ट्रक्शन को अनुमति देने वाली एक्सपर्ट्स अडवाइजरी कमिटी को भी गैरकानूनी करार देते हुए भंग कर दिया था। इसके बाद एएसआई ने प्रतिबंधित दायरे में हो रहे कॉमनवेल्थ गेम्स से संबंधित प्रोजेक्टों के अलावा 92 निर्माण कार्यों से संबंधित एजेंसी या व्यक्ति को नोटिस जारी कर तुरंत काम बंद करने को कहा था।



ऐसे में इन प्रोजेक्टों के पूरा होने पर खतरा मंडराने लगा था। सरकार ने अध्यादेश लाकर इसका हल ढूंढ लिया। इस अध्यादेश के तहत स्मारक के 100 मीटर के दायरे में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स के प्रोजेक्टों के लिए कानून में छूट दे दी गई है। हालांकि शहीदी पार्क के पास एमसीडी की प्रस्तावित पार्किन्ग को हरी झंडी नहीं मिल पाई। इसकी वजह यह है कि एएसआई ने इस पार्किन्ग के लिए कभी अपनी मंजूरी दी ही नहीं थी।



एएसआई के एक आला अधिकारी का कहना है कि शहीदी पार्क के पास ही फिरोजशाह कोटला का किला है। तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह तुगलक ने इसका निर्माण किया था और इस किले के आसपास ही अपना शहर बसाया था। ऐसे में इस बात की संभावना है कि प्रस्तावित पार्किन्ग की जमीन के नीचे कई पुरातात्विक अवशेष हों। पार्किन्ग के निर्माण से ये अवशेष नष्ट हो सकते हैं। इसी वजह से हमने एमसीडी से कहा है कि वह इस जगह का जीपीआर सवेर् कराए। जीपीआर सर्वे के तहत सैटलाइट तरंगों को जमीन पर डाला जाता है। हमने एमसीडी से यह भी कहा है कि वह किले की बाउंड्री और शहीदी पार्क की बाउंड्री से संबंधित डिटेल प्लान तैयार करके दे। अगर एमसीडी ऐसा करती है, तभी इस प्रस्तावित पार्किन्ग पर विचार किया जाएगा। इस पूरे एरिया को भी आर्कियॉलजी के नजरिए से इन्वेस्टिगेट करने की जरूरत है। बहादुरशाह जफर मार्ग पर पार्किन्ग की भारी समस्या को देखते हुए एमसीडी ने शहीदी पार्क के पास अंडरग्राउंड पार्किन्ग बनाने की योजना बनाई थी।

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ऐतिहासिक स्थलों को टूरिस्ट फ्रेंडली बनाएंगे

पिछले दिनों डॉ. गौतम सेन गुप्ता ने आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के महानिदेशक का पद संभाला। सालों बाद इस पद पर किसी आर्कियॉलजिस्ट का आना निश्चय ही महत्वपूर्ण है। रीतेश पुरोहित ने उनसे बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि यह जिम्मेदारी संभालने के बाद डिपार्टमेंट को लेकर उनकी क्या योजनाएं हैं और मौजूदा समस्याओं से निपटने के लिए वह कौन सी रणनीति अपनाएंगे।
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अरसे बाद एक आर्कियॉलजिस्ट ने फिर से एएसआई के महानिदेशक का पद संभाला है। पिछले 15 सालों के दौरान कई पक्ष अनछुए रह गए हैं। इनके बारे में अब आपकी क्या प्लानिंग है और आपका क्या विजन है?

मुझे अभी इस पद को संभाले ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। फिलहाल तो मैं डिपार्टमेंट से संबंधित हर मुद्दे को अच्छी तरह समझ रहा हूं। इस समय हम डिपार्टमेंट में स्पेशलाइज्ड लोगों की कमी से जूझ रहे हैं। इसके लिए हम अपने डिपार्टमेंट के लोगों को ट्रेंड करके इस समस्या को सुलझाना चाहते हैं। लोगों को ऐतिहासिक स्मारकों से जोड़ने के लिए हम पब्लिक रिलेशन प्रोग्राम्स पर भी जोर दे रहे हैं। हम हेरिटेज साइट्स को टूरिस्ट फ्रेंडली बनाने में जुटे हैं, लेकिन यह एक लॉन्ग टर्म प्रोसेस है।

देश भर में ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जिन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कई जगहों पर अवैध कब्जे हैं, असामाजिक तत्व यहां डेरा डाले रहते हैं। इस तरह की प्रॉब्लम्स से निपटने के लिए आपके पास क्या ऐक्शन प्लान है?

हम इन सभी प्रॉब्लम्स को जानते हैं। संसद के इसी सत्र में ऐतिहासिक स्मारकों से संबंधित नया कानून पास हुआ है। नए ऐक्ट में इन सभी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए कुछ नए नियम और प्रावधान किए गए हैं।

कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर 46 स्मारकों पर कन्जर्वेशन और रिस्टोरेशन का काम हो रहा है, लेकिन क्या आपको लगता है कि गेम्स के बाद भी इन स्मारकों पर इसी तरह ध्यान दिया जाएगा और ये फिर से नजरअंदाज नहीं किए जाएंगे?

गेम्स केवल हमारे लिए नहीं पूरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। दिल्ली एक ऐतिहासिक शहर है, इसलिए इन खेलों के मद्देनजर हमारी जिम्मेदारी भी काफी है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि गेम्स के बाद भी सभी ऐतिहासिक स्मारकों पर हमारा पूरा ध्यान रहेगा।


कानून के मुताबिक केंद्र द्वारा संरक्षित किसी भी स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई भी कंस्ट्रक्शन या खुदाई नहीं की जा सकती। ऐसी शिकायत मिलने पर एएसआई पुलिस में शिकायत करती है, लेकिन यहां तो देखते ही देखते पूरी बिल्डिंग खड़ी हो जाती है। एएसआई इसे पुलिस की जिम्मेदारी मानती है, लेकिन समस्या जस की तस रहती है। ऐसे में सॉल्यूशन क्या है?
सभी संबंधित डिपार्टमेंट बेहतर तालमेल से काम करें, तभी यह समस्या सुलझ सकती है।

1958 के ऐक्ट के मुताबिक 100 साल पुराने किसी राष्ट्रीय महत्व के स्मारक को संरक्षित घोषित किया जा सकता है, लेकिन देश में कई ऐसे स्मारक हैं जो सैंकड़ों साल पुराने हैं, लेकिन एएसआई की लिस्ट में शामिल नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि किसी ऐतिहासिक स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने की नीति क्या है?
यह बात एकदम सही है कि कई सारे स्मारक ऐसे हैं, जो 100 साल से ज्यादा पुराने हैं, लेकिन वे एएसआई के संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल नहीं हैं। सेंट्रल अडवाइजरी बोर्ड ऑफ आर्कियॉलजी की मीटिंग में इस बारे में चर्चा की गई है। भारत सरकार की इस पर नजर है। हालांकि हम हर साल नए स्मारकों को अपनी लिस्ट में शामिल करते जा रहे हैं।

पूरे देश में इस समय तेजी से डिवेलपमेंट वर्क हो रहा है, लेकिन कई जगहों पर इसके कारण हमारे ऐतिहासिक स्मारक नष्ट होते जा रहे हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?
यह अकेले भारत की नहीं, पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ी समस्या है, लेकिन फ्यूचर के लिए डिवेलपमेंट बहुत जरूरी है। ऐसे में डिवेलपमेंट और कन्जर्वेशन में एक बैलेंस होना चाहिए यानी डिवेलपमेंट इस तरह हो, जिससे ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान न पहुंचे।

आप खुद ऐकडेमिक बैकग्राउंड से आते हैं। आर्कियॉलजी से संबंधित रिसर्च के बारे में आपकी क्या योजनाएं हैं?
इस फील्ड में रिसर्च कराना हमारे मुख्य अजेंडे में है। हम प्री-हिस्ट्री, हिस्टोरिक आर्कियॉलजिकल साइंस, कंजर्वेशन स्टैंडर्ड आदि सब्जेक्ट्स पर रिसर्च कराना चाहते हैं।

देश में आपके 24 सर्कल हैं और हजारों ऐतिहासिक स्मारक आपके संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल हैं, लेकिन डिपार्टमेंट की संरचना सुदृढ़ नहीं है। एएसआई के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। डिपार्टमेंट हर स्तर पर कर्मचारियों और अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है।
यह सही है। हम इस बारे में सरकार से बात कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द इस कमी को पूरा किया जाए।

वाह! क्या नाम है

डीएमके नेता एम. करुणानिधि के बेटों में राजनीतिक वर्चस्व के लिए संघर्ष चल रहा है. जब भी करुणानिधि के सुपुत्र एम.के. स्टालिन की चर्चा होती है, लोग जानने को उत्सुक हो जाते हैं कि उनका नाम और तमिल नामों से इतना अलग क्यों है?

दरअसल द्रविड़ आंदोलन के सूत्रधार पेरियार ई.वी. रामास्वामी अपनी सोवियत संघ की यात्रा के बाद कम्युनिस्ट आंदोलन से बहुत प्रभावित हो गए थे। वह सोवियत नेताओं की खूब चर्चा करते थे। इस कारण उस दौर में तमिलनाडु में स्टालिन और लेनिन नाम प्रचलित हो गए। अपने नेता की तरह एम. करणानिधि भी सोवियत नेताओं से प्रभावित थे। उन्होंने अपने एक बेटे का नाम स्टालिन रखा। करुणानिधि के इस बेटे के जन्म के चार दिनों के बाद ही सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन की मौत हो गई।

आरजेडी अध्यक्ष और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की बड़ी बेटी का नाम मीसा है। इसका अर्थ क्या है? मीसा का मतलब है- मेंटिनेंस ऑफ इंटरनल सिक्युरिटी एक्ट। यह कानून इमर्जेंसी के दौर में लाया गया था, जिसके तहत कई अन्य नेताओं के साथ लालू भी जेल में बंद रहे। उसी दौरान उनकी इस बेटी का जन्म हुआ।
हमारे देश में दिलचस्प नामों के रोचक संदर्भ हैं। अंडरवर्ल्ड में अजीबोगरीब नाम मिलते हैं। दाऊद इब्राहिम का एक शार्गिद मोहम्मद सलीम मोहम्मद इकबाल कुरैशी सलीम फ्रूट के नाम से फेमस हुआ। वजह यह थी कि उसके पिता फलों का धंधा करते थे और बाद में उसने भी यहीं धंधा अपना लिया था। एक और सलीम था। उसके पास कई टेंपो थे, जिनके जरिए वह अपने टेंपो को स्मगलिंग के लिए किराए पर दिया करता था, इसलिए उसका नाम पड़ गया- सलीम टेंपो।

पहले कूड़ा देखो, फिर अशोक का शिलालेख

रीतेश पुरोहित ।। नई दिल्ली


ईस्ट ऑफ कैलाश में मौर्य शासक सम्राट अशोक का दुर्लभ शिलालेख देखने स्टों का सबसे पहले सामना होता है, यहां फैली बदबू से। यह बदबू आती है इस ऐतिहासिक स्मारक के इकलौते एंट्री गेट के दोनों ओर पड़े रहने वाले कूड़े से। तीन सालों से यहां कूड़ा डाला जा रहा है और इसकी संभावना बेहद कम है कि आने वाले समय में भी यहां कूड़ा इकट्ठा होना बंद हो। वजह यह है कि एमसीडी के पास कूड़ा डालने के लिए इस एरिया में कोई और जगह ही नहीं है। नियमत: किसी भी संरक्षित स्मारक के पास कूड़ा फेंका जाना गलत है। यह जगह उन ऐतिहासिक स्मारकों की लिस्ट में है, जिन पर कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर खास ध्यान दिया जा रहा है।


साउथ दिल्ली में कैप्टन गौड़ मार्ग और कालकाजी मंदिर के पास मौजूद ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का यह शिलालेख इलाके के रेजिडेंशल इलाके में खुदाई के दौरान मिला था। 1996 में आर्कियॉलजिस्टों ने इसे पहचाना। यह शिलालेख सम्राट अशोक द्वारा लिखे उन आदेशों में से एक है, जिसमें उन्होंने भारत के लोगों को करीब लाने के लिए और धम्म (धर्म) के बारे में बताने के लिए शिक्षा दी थी। दस लाइनों के इस उद्बोधन को प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। हालांकि अब इस पर लिखे अक्षर भी ठीक से दिखाई नहीं देते।

कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर एएसआई की यहां नए साइनेज लगाने, नए टॉयलेट ब्लॉक्स बनाने और सौंदर्यीरण की प्लानिंग है। सूत्र बताते हैं कि बौद्ध धर्म के लोगों के लिए यह स्थान बेहद मायने रखता है। यहां अक्सर विदेशों से बौद्ध पर्यटक भी आते हैं, लेकिन एंट्री गेट के दोनों तरफ लगे कूड़े के ढेर की वजह से उनकी सारी उत्सुकता खत्म हो जाती है। सूत्रों का कहना है कि पहले यह कूड़ा गेट के अंदर पड़ा होता था। पिछले साल यहां थाइलैंड की राजकुमारी आई थीं। उस समय यहां बहुत बड़ा कार्यक्रम किया गया था। तब इस कूड़े के ढेर को उनकी नजरों से बचाने के लिए बाहर लाया गया और ढक दिया गया। तबसे कूड़े का अंदर फेंका जाना बंद हो गया। सूत्रों का कहना है कि घरों से इकट्ठा होने वाला कूड़ा भी यहीं फेंका जाता है। इसके बाद कूड़े को यहां से उठाकर ले जाया जाता है।
एएसआई अधिकारियों का कहना है कि हमने इस बारे में एमसीडी को एक बार लेटर लिखा था, लेकिन एमसीडी ने हमें बताया कि उसके पास इलाके में कोई और ऐसी जगह नहीं है, जहां इस कॉलोनी में इकट्ठे होने वाले कूड़े को फेंका जाए। एमसीडी प्रवक्ता दीप माथुर ने भी माना कि हमारे पास यहां ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां इस कूड़े को फेंका जा सके। हालांकि हमने सेनेटरी इंस्पेक्टर को निदेर्श दिए हैं कि यहां पर्याप्त सफाई रखी जाए, ताकि बदबू न आए। हम कोशिश कर रहे हैं कि ऐसी कोई जगह मिल जाए, जहां कूड़े को फेंका जा सके। उन्होंने इस बात पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स तक यह पूरा कर लिया जाएगा या नहीं। हालांकि एएसआई अधिकारियों को पूरा भरोसा है कि इस ऐतिहासिक स्मारक के गेट पर लगने वाले कूड़े को हर हाल में हटाया जाएगा। उनका कहना है कि हम इसके लिए एमसीडी के आला अधिकारियों से बात करेंगे।

Saturday, March 27, 2010

एएसआई पर गिरा कब्रिस्तान का पेड़

रीतेश पुरोहित/8 जनवरी 2010


नई दिल्ली।। एक पेड़ गिरा और एएसआई जाग गया। लोथियंस रोड का कब्रिस्तान कई सालों अपनी खराब हालत को सुधारे जाने का इंतजार कर रहा था लेकिन एएसआई को होश अब आया है। टूटे हुए पेड़ों ने इसमें अहम भूमिका निभाई। इस कब्रिस्तान में अंग्रेजों की 200 साल से भी ज्यादा पुरानी 200 कब्रें और कुछ छतरियां हैं। इनमें से कई अब टूट चुकी हैं और और कुछ के अवशेष बचे हैं। अब एएसआई इस पूरे कब्रिस्तान के संरक्षण की तैयारी कर रहा है और जल्द ही यहां काम शुरू करने वाला है।

कश्मीरी गेट पर रेलवे ब्रिज के पास स्थित लोथियन कब्रिस्तान दिल्ली में ब्रिटिशों का पहला कब्रिस्तान था। 1808 से 1867 के बीच यहां ईसाई समुदाय के लोगों को दफनाया जाता था। बाद में कुछ लोगों ने इस कब्रिस्तान पर अवैध तौर पर कब्जा कर लिया और यहां पक्के मकान बना लिए। एएसआई ने भी इसे अपने संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल कर लिया था, लेकिन इसके बाद भी कई सालों तक वे यहां बिना किसी रोकटोक के रहते रहे।
सूत्रों के मुताबिक, जब जगमोहन केंद्र सरकार में मंत्री थे, तब इस कब्रिस्तान को अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया था। तभी यहां की बाउंड्री वॉल बनाई गई और लोहे का गेट लगाया गया। हालांकि फिर इन कब्रों के संरक्षण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन मरम्मत का इंतजार कर रही इन कब्रों की हालत और खराब होने लगी। कुछ समय पहले इस कब्रिस्तान में लगे दो-तीन पेड़ टूटकर कब्र पर गिर गए, जिसके बाद अब तक कुछ कब्रें पेड़ों के नीचे दबी हुई हैं। इससे कब्रों को बुरी तरह नुकसान हुआ है। ये कब्र अभी भी पेड़ के नीचे ही दबी हुई हैं। इसके बाद एएसआई ने इस कब्रिस्तान के संरक्षण के लिए पक्का मन बनाया।
एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहले हमें फंड को लेकर काफी प्रॉब्लम रहती थी, इसी वजह से इन कब्रों की मरम्मत के बारे में कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमने इस कब्रिस्तान का दौरा कर सभी कब्रों की स्थिति को देख लिया है। इनमें से कुछ कब्रों की मरम्मत का काम होगा और जरूरत पड़ने पर कुछ पत्थरों को बदला भी जाएगा।
हमारी पहली कोशिश यह रहेगी कि कब्रों या पिलर के जो हिस्से टूट गए हैं, उन्हें ही वापस लगाया जा सके, ताकि यह कब्रिस्तान अपने पुराने रूप में आ सके। पेड़ों के नीचे दबी कब्रों को बाहर निकाला जाएगा। पहले इस काम में खर्च होने वाले पैसे का हिसाब लगाया जाएगा और डिपार्टमेंट से अंतिम मंजूरी मिलने के बाद अगले महीने से हम काम शुरू कर देंगे।

बताया जाता है कि एक अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल लोथियन केर स्कॉट के कार्यकाल के दौरान 1867 में ही इस कब्रिस्तान के पास मौजूद रेलवे ब्रिज का निर्माण हुआ था। इसी वजह से उनके नाम पर ही इस कब्रिस्तान और सड़क का नाम पड़ा। एक बेहद बड़े साइज में बना 'क्रॉस' का चिह्न इस कब्रिस्तान का मुख्य आकर्षण है। कहते हैं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मारे गए अंग्रेजों की याद में इस ममॉरियल को बनाया गया था।

महरौली में मिली बलबन के जमाने की कब्र

रीतेश पुरोहित / १६ देक २००९

नई दिल्ली।। महरौली में बलबन के मकबरे पर संरक्षण का काम कर रहे आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को यहां खुदाई के दौरान सैकड़ों साल पुराने अवशेष मिले हैं। इनमें 13वीं सदी के बलबन काल की एक कब्र भी शामिल है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि यह कब्र गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन की हो सकती है। इसके अलावा एएसआई को यहां कुछ पिलर, चबूतरा, मिट्टी के बर्तन, तरकश और चौसर भी मिला है। एएसआई का कहना है कि अब इस बारे में पता किया जा रहा है कि ये अवशेष किस काल के हैं।

एएसआई ने कॉमनवेल्थ गेम्स के मद्देनजर लोगों को दिल्ली की ऐतिहासिक विरासत दिखाने के लिए 46 स्मारकों को चुना है और वह इन जगहों पर संरक्षण का काम कर रहा है। महरौली के आर्कियॉलजिकल पार्क में मौजूद गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन के मकबरे का नाम भी इसमें शामिल है। हालांकि यहां इस मकबरे के अवशेष ही बचे हैं। सबसे पहले इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) ने बलबन के मकबरे का संरक्षण किया था। इसके बाद एएसआई ने इसे अपने प्रोटेक्शन में ले लिया और यहां संरक्षण और मरम्मत का काम कराया। फिलहाल मकबरे के पूर्व में बलबन के बेटे खां शाहिद की एक कब्र मौजूद है।
एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स को ध्यान में रखते हुए हमने करीब चार महीने पहले बलबन के इस मकबरे पर काम शुरू किया था। हमने यहां 3 फुट से लेकर 12 फुट तक खुदाई की और हमें स्ट्रक्चर मिलने शुरू हो गए। हमें यहां एक कब्र मिली है। यह लाल पत्थर से बनी हुई है और इससे जाहिर होता है कि ये कब्र 13वीं शताब्दी यानी बलबन काल की है, क्योंकि उसी काल में लाल पत्थर का इस्तेमाल किया जाता था। हो सकता है कि यह कब्र बलबन की हो। हमें यहां कुछ पिलर भी मिले हैं और इन्हें देखकर लगता है कि यहां राजा का दरबार लगा करता था। बाकी अवशेषों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। अब इनकी कार्बन डेटिंग की जाएगी, जिससे पता चल सकेगा कि ये अवशेष किस काल के हैं। यह भी पता चल सकता है कि यह कब्र किसकी है। अधिकारी का कहना है कि खुदाई का काम लगभग पूरा हो चुका है और इसके बाद कंजर्वेशन का काम करेंगे और फिर ब्यूटीफिकेशन और लाइटिंग का काम किया जाएगा।
बलबन का मकबरा भारत और इस्लामिक वास्तुशास्त्र का मिलाजुला रूप है। बलबन एक तुर्किश विद्वान का बेटा था, लेकिन बचपन में मंगोलों ने उसे बेच दिया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे आजाद कराया। उसने गुलाम वंश के ही शासक नासिरुद्दीन महमूद की बेटी से शादी की। नासिरीरुद्दीन का कोई बेटा न होने की वजह से उसकी मौत के बाद बलबन ने खुद को गुलाम वंश का शासक घोषित कर दिया। 1266 में गयासुद्दीन की पदवी के साथ उसने भारत की राजगद्दी संभाली और 1287 तक राज किया।

क्या गेम्स तक मुक्त हो पाएगा बिजरी खान का मकबरा

रीतेश पुरोहित ।। नई दिल्ली / १ दिसम्बर २009


आरकेपुरम सेक्टर 3 के मेन रोड पर स्थित है 15वीं सदी का लोदी काल का बिजरी खान का मकबरा. इसे एक ओर से झुग्गी बस्ती ने अपनी चपेट में ले रखा है, दूसरी ओर एक पब्लिक टॉइलट है। यहां रह रहे लोगों ने इमारत के सामने बनी बाउंड्री पर एक लंबी दीवार खड़ी कर ली है। बगल में एक मंदिर है। बच्चों ने इसे खेल का मैदान बना लिया है, किसी ने कपड़े सुखाने की जगह और किसी ने आरामगाह। इस सबका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है इस मकबरे को, जो कई जगह से टूट गया है। इसके पास ही एक टेनिस स्टेडियम है, जहां कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान टेनिस की प्रतियोगिताएं होंगी। यह स्मारक दिल्ली सरकार के आकिर्यॉलजी डिपार्टमंट की देखरेख में है। डिपार्टमंट इससे वाकिफ है, लेकिन फिलहाल खुद को बेबस बता रहा है।

यहां रह रहे लोगों को इसके बारे में कुछ नहीं पता। 35 साल के रविशंकर केवल इतना जानते हैं कि यह कोई गुंबद है। उनका कहना है हम यहां बीस साल से रह रहे हैं और हमें यहां से कोई हटाने नहीं आया। न तो हमें पानी की कोई प्रॉब्लम है और न ही बिजली की। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक-दो हफ्ते में कोई कर्मचारी यहां आता है और साफ-सफाई कर चला जाता है।
सूत्रों का कहना है कि पहले लोगों ने इस मकबरे के अंदर कब्जा कर रखा था। बाद में उन्हें यहां से निकाला गया और इसे दोनों ओर से ताला लगाकर बंद किया गया। यहां एक साइनेज भी लगाया गया था, लेकिन लोगों ने इसे तोड़ दिया, जिसके बाद इसे मकबरे के अंदर ही रख दिया गया। दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमने ऐसे 20 स्मारकों को चुना है, जिन पर कॉमनवेल्थ गेम्स तक हर हाल में काम पूरा करना है। बिजरी खान का मकबरा इस लिस्ट में शामिल है और यह इसके महत्व को जाहिर करता है। उन्होंने बताया कि इस मकबरे के आसपास की जमीन लैंड ऐंड डिवेलपमंट ऑफिस के अधीन है। हम अवैध कब्जे को नहीं हटा सकते। पहले इस मकबरे को नोटिफाई किया जाएगा। इसके लिए हम लैंड एंड डिवेलपमेंट ऑफिस से संपर्क करेंगे और उनकी मदद से यहां अतिक्रमण हटाया जाएगा। फिर हम पूरी इमारत के संरक्षण का काम शुरू करेंगे।
इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चरल हेरिटेज के दिल्ली सर्कल के संयोजक ए. जी. के. मेनन का कहना है कि अभी तक यह मकबरा संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में शामिल नहीं है। जब तक नोटिफिकेशन करके इसे कानून के दायरे में नहीं लाया जाता, हम कुछ नहीं कर सकते। एक बार नोटिफिकेशन हो जाता है, फिर सरकार से इसे अवैध कब्जे से मुक्त करने की अपील की जा सकती है।
इस ऐतिहासिक स्मारक के पास ही डीएलटीए टेनिस स्टेडियम हैं, जहां कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान टेनिस का आयोजन किया जाएगा। जाहिर सी बात है ऐसे में सड़क के बिल्कुल पास ही मौजूद इस स्मारक पर लोगों का ध्यान जरूर जाएगा। हेरिटेज एक्सर्पट्स का मानना है कि अगर इस ऐतिहासिक स्मारक का गेम्स तक ऐसा ही हाल रहता है तो लोगों की नजर में देश की छवि बेहद खराब बनेगी।

तोड़ दीं जफर महल की जालियां

रीतेश पुरोहित ।। नई दिल्ली


महरौली में ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से सटा करीब 200 साल पुराना जफर महल जुआरियों और शराबियों का अड्डा तो सालों से बना ही है, अब बदमाशों ने मुगल काल के आखिरी दौर की इमारतों में शुमार इस महल की संगमरमर से बनी जालियां भी तोड़ डाली हैं।

दरगाह की देखरेख में जुटे लोगों का कहना है कि इस महल के हर कोने में लोग जुआ खेलते दिखाई दे जाएंगे। जुआ खेलने वाले दिन में तो बदमाश हाथी गेट से अंदर घुस जाते हैं, लेकिन रात में चौकीदार के ताला लगाकर चले जाने के बाद इन्हें अंदर घुसने में परेशानी होती थी। हालांकि दरगाह के पीछे से महल में जाने का रास्ता है, लेकिन इस रास्ते से महल में जाने के लिए जालियों को फांदकर जाना पड़ता था। इसलिए बदमाशों ने अपनी सहूलियत के लिए ये जालियां तोड़ डालीं। उन्होंने बताया कि हमने इस बारे में कई दिनों पहले ही पुलिस के पास शिकायत दर्ज करा दी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इससे दरगाह की सुरक्षा पर भी खतरा पैदा हो गया है।
दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतें बचाने की मुहिम में जुटी संस्था हेरिटेज ऐंड कल्चरल फोरम की अध्यक्ष ऊषा कुमार का कहना है कि लाल पत्थर से बना जहाज महल मुगल शासन की अंतिम इमारतों में से एक है, जो मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस लिहाज से तोड़ी गईं जालियां भी बेशकीमती थीं। उनका कहना है कि 1999 में हमने स्मारक बदहाली के मद्देनजर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट ने महल के आसपास से अतिक्रमण हटाने और इसका अच्छी तरह संरक्षण करने का आदेश दिया था। लेकिन इसके बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया। मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय ने 1842 में तीन मंजिला जफर महल का निर्माण कराया था, जिसका काफी हिस्सा अब टूट चुका है और अधिकतर जगह दीवारें ही बची हैं। अकबर शाह के बेटे और अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने विशाल हाथी गेट बनवाया था। बताया जाता है कि बहादुरशाह जफर ने इसे इतना बड़ा इसलिए बनवाया था, ताकि हाथी आसानी से उसके अंदर जा सके।
फिलहाल यह दोनों ही स्मारक आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की संरक्षित इमारतों की लिस्ट में शामिल हैं। एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी इन जालियों के टूटने और यहां चल रहीं आपराधिक गतिविधियों से वाकिफ हैं, लेकिन इस ऐतिहासिक स्मारक को आपराधिक तत्वों से छुटकारा दिला पाने में खुद को मजबूर बताते हैं। एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि हमने इस बारे में पुलिस में शिकायत की है। इस तरह के मामलों में कोई ऐक्शन के लिए हमें पुलिस पर ही डिपेंड रहना पड़ता है, क्योंकि हमारे पास इन बदमाशों से निपटने के लिए कोई और बंदोबस्त नहीं हैं। मुगल जमाने की जालियां वाकई बेशकीमती थीं, लेकिन अब हम जल्द ही नई जालियां लगा देंगे और वहां फेन्सिंग भी कर देंगे।
बहादुर शाह जफर हर साल शिकार के लिए जाते वक्त इस महल का इस्तेमाल करते थे। हर साल 'फूल वालों की सैर' उत्सव के दौरान उनको इसी महल में सम्मानित किया जाता था।

प्रतिकूल भाग्य के लिए भी हम ही होते हैं जिम्मेदार

रीतेश पुरोहित / १३ मई २००९


पिछले दिनों इंटरनेट पर मुझे स्टीफन कॉव का एक लेख पढ़ने को मिला। कॉव पश्चिम के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं, जो लोगों का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना, अपनी वृत्तियों को नए तरह से समझना और जीने का सलीका सिखाते हैं।

स्टीफन कॉव का जो लेख मैं ने पढ़ा उसमें उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि किस तरह अपनी जिंदगी की 90 प्रतिशत घटनाओं की वजह हम स्वयं होते हैं। आम तौर पर कहा यह जाता है कि जिंदगी की ज्यादातर बातों या घटनाओं पर हमारा कोई अख्तियार नहीं होता। गीता में तो यहां तक कहा गया है कि फल की चिंता मत करो क्योंकि फल पर भी तुम्हारा अख्तियार नहीं है। सिर्फ कर्म करो, सिर्फ अपना कर्म क्योंकि वही एक ऐसी चीज है जो पूरी तरह से तुम्हारे वश में है।
लेकिन स्टीफन कॉव ने अपने लेख में इससे बिल्कुल अलग व्याख्या प्रस्तुत की है। वे कहते हैं कि अपने जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों (90 प्रतिशत) के लिए भी हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं। यह विचार मुझे अच्छा लगा और कुछ अलग भी, इसलिए इसे आपके साथ बांटना चाहता हूं।
स्टीफन कॉव लिखते हैं कि हम अपनी लाइफ में होने वाली 10 प्रतिशत घटनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन किसी एक घटना के बाद दिन भर होने वाली 90 फीसदी चीजों को नियंत्रित कर सकते हैं। जैसे आप ट्रैफिक में रेड लाइट को कंट्रोल नहीं कर सकते, लेकिन उसके बाद से होने वाले अपने रिएक्शन को कर सकते हैं, जो रिएक् शन आपके दिन के बाकी के घंटों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं।

स्टीफर एक उदाहरण देते हैं। सोचिए कि आप अपनी फैमिली के साथ ब्रेकफास्ट कर रहे हैं। बगल में बैठी बेटी आपकी शर्ट पर कॉफी गिरा देती है। आप गुस्से से आगबबूला हो जाते हैं और बेटी को जोर से डांट देते हैं। वह रोने लगती है। अब गुस्से का शिकार होती हैं अपनी पत्नी। आप शिकायत करते हैं कि कप टेबल के सिरे पर रखा हुआ था, इसी वजह से वह गिरा। इसके बाद दोनों ओर से तीखी बहस होती है। आखिरकार आप ऊपर के कमरे में जाते हैं और शर्ट चेंज करते हैं। वापस आकर देखते हैं कि बेटी अभी तक रो रही है और उसने अपना ब्रेकफास्ट खत्म नहीं किया है। उसकी स्कूल बस छूट गई है।
उधर, आपकी पत्नी को भी तुरंत ऑफिस के लिए निकलना है। इसके बाद आप कार निकालते हैं। चूंकि आप भी लेट हो चुके हैं, इसलिए 30 किमी/घंटा स्पीड लिमिट वाली सड़क पर 40 की स्पीड से गाड़ी चलाते हैं। नतीजतन ट्रैफिक फाइन के तौर पर पांच सौ रुपये चुकाने होते हैं और 15 मिनट की देरी से आप स्कूल पहुंचते हैं। बेटी गाड़ी से उतरकर आपसे बिना कुछ कहे स्कूल चली जाती है।
अंत में आप भी बीस मिनट लेट होकर ही अपने ऑफिस पहुंचते हैं। पता चलता है कि ब्रीफकेस तो आप घर पर ही भूल गए हैं। शाम को आप घर पहुंचते हैं। लेकिन पत्नी और बेटी आपसे बात नहीं करते।
मतलब आपके दिन की शुरुआत बुरी हुई और पूरा दिन ही खराब हो गया। इसके लिए आप किसे दोषी मानते हैं? कॉफी को, बेटी को, पुलिसवाले को या खुद को। जाहिर है इस सबके लिए आप खुद ही जिम्मेदार हैं। आप चाहते तो एक बुरी घटना से अपना पूरा दिन खराब होने से बचा सकते थे। कॉफी गिरने के बाद आप गुस्से पर काबू रखते हुए बेटी को समझाते और उसे आगे से सावधानी बरतने के लिए कहते। ब्रीफकेस से शर्ट निकालने के बाद समय पर नीचे आते। आपकी बेटी समय पर तैयार हो चुकी होती। वह खुशी-खुशी आपसे विदा लेती और आसानी से बस पकड़ लेती। आप 5 मिनट पहले ऑफिस पहुंचते और जोश के साथ अपने सहयोगियों से मिलते। आपका बॉस भी यह अंदाज देखकर खुश हो जाता।
अंतर देखिए। एक घटना। दो अलग रिएक्शन। नतीजे में जमीन-आसमान का फर्क। यानी यदि किसी भी घटना पर आप सोच समझकर और ठंडे दिमाग से कोई रिएक्शन देते हैं तो यह आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।

दोस्त है टेक्नॉलजी

 रीतेश पुरोहित/ २ जनवरी 2010


ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो हर नई तकनीक को संदेह की नजर से देखते हैं। उनमें से कई यह कहते  मिल जाएंगे कि इंटरनेट ने नई पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है। क्या सचमुच ऐसा है? मुझे एक घटना याद आती है। पिछले साल सर्दी के मौसम में ही एक दिन सुबह-सुबह अचानक मेरा मोबाइल बजा।

ममी का कॉल था। वह काफी परेशान लग रही थीं। पूछने पर बताया कि दो दिन से राहुल (मेरा बड़ा भाई) का फोन नहीं आया है और कई बार कोशिश करने के बाद भी उसका फोन नहीं लग रहा है। मैं सन्न रह गया। भैया उस वक्त इलाहाबाद में पढ़ाई कर रहा था। वह मुझे भी लगभग हर रोज कॉल कर लेता था, लेकिन याद आया कि मेरी भी उससे दो दिनों से बात नहीं हुई है। मैंने ममी को दिलासा दी और समझाया कि वो कहीं बिजी होगा या उसके मोबाइल में कोई खराबी आ गई होगी। मैंने ममी को समझा तो दिया, लेकिन खुद चिंता में पड़ गया। मैं तो दो-तीन दिनों के अंतराल पर घर फोन किया करता था, लेकिन वह ममी-पापा को फोन करना नहीं भूलता था।
मैंने उसे तुरंत कॉल किया, लेकिन कॉल कनेक्ट ही नहीं हो रहा था। मेरे पास उसके किसी दोस्त का नंबर नहीं था और इलाहाबाद में न तो हमारा कोई रिश्तेदार था और न मैं वहां किसी को जानता था। मैंने कई बार उसके दोस्त का कॉन्टेक्ट नंबर लेने के बारे में सोचा, लेकिन जब भी उससे बात होती, भूल जाता। उस दिन मैं पछता रहा था कि मैंने इतनी बड़ी लापरवाही क्यों की? मैंने अपने रूममेट्स को भी यह बात बताई। हम सब सोच में पड़ गए। चिंता बढ़ती जा रही थी और कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। अचानक आइडिया आया कि क्यों न उसे ई-मेल कर दूं, लेकिन मुश्किल यह थी कि वो नेट पर ऑनलाइन कब होगा। कब वो मेरा ई-मेल देखेगा और कब वो घर पर कॉल करेगा। फिर दिमाग में आया कि उसकी ऑर्कुट प्रोफाइल पर इलाहाबाद के कई फ्रेंड्स होंगे। ऑर्कुट के जरिए उसके किसी दोस्त का मोबाइल नंबर मिल सकता है।
मैं उसके दोस्त को फोन करके भैया का हालचाल पूछ सकता हूं। यही सोचकर मैं इंटरनेट कैफे पर गया। वहां जाकर भैया की फ्रेंड लिस्ट खंगाल ही रहा था कि अचानक उसका फोन आ गया। उसने बताया कि उसके सिमकार्ड की वैलिडिटी खत्म हो गई थी और उसकी यूनिवर्सिटी के आसपास मोबाइल रिचार्ज की कोई दुकान नहीं थी, इसलिए वो किसी को कॉल नहीं कर पाया। उससे बात करके मेरी जान में जान आई। हालांकि ऑर्कुट से कोई मदद मिलने से पहले ही उसका फोन आ गया, लेकिन तब अहसास हुआ कि एक सोशल नेटवर्किंग साइट की अहमियत क्या है। हमारी पीढ़ी टेक्नॉलजी के साथ ही आगे बढ़ी है इसलिए हम उसी की आंख से अपने जीवन को देखते हैं और अपना रास्ता ढूंढते हैं। तभी तो अपने भाई से कॉन्टेक्ट करने के लिए ऑर्कुट ही मुझे एकमात्र विकल्प नजर आया।

टेंशन फ्री होकर कर सकेंगे कुतुब की सैर

रीतेश पुरोहित / २१ मार्च २०१०


नई दिल्ली।। दुनियाभर से हजारों लोग हर रोज कुतुब मीनार देखने आते हैं, लेकिन यह देखकर  निराश हो जाते हैं कि इस वर्ल्ड हेरिटेज साइट पर टूरिस्टों के लिए बेसिक फैसिलिटीज का भी अभाव है। यहां कोई कैंटीन नहीं है, टॉइलेट ब्लॉक ठीक नहीं हैं और पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। हालांकि अब आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) जल्द ही टूरिस्टों की इन शिकायतों को दूर करेगा। यहां एक नई कैंटीन खोलने के अलावा पार्किंग और टॉइलेट व्यवस्था को भी दुरुस्त करने की तैयारी है। उम्मीद है कि कॉमनवेल्थ गेम्स तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा।

गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई यह मीनार न सिर्फ दिल्ली बल्कि भारत के सबसे पसंदीदा टूरिस्ट प्लेस में से एक है। 39 लाख टूरिस्टों की संख्या के साथ 2006 में यह भारत के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्मारकों की लिस्ट में पहले नंबर पर थी। इस सबके बावजूद यहां टूरिस्ट पीने के पानी के लिए भी बाहर लगी रेहडि़यों पर ही डिपेंड हैं, जो यहां दोगुने रेट पर लोगों को पानी देते हैं।
इन रेहडि़यों का पानी कितना सेफ हैं, कोई नहीं जानता। खुद एएसआई अधिकारी भी इस बात को मानते हैं। उनका कहना है कि हमने आज तक नहीं देखा कि किसी एमसीडी के अधिकारी ने इन कियोस्क के पानी की जांच की हो। हमने इसके लिए कई बार एमसीडी के अधिकारियों से शिकायत भी की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। लोग नाश्ते या खाने के लिए भी पास ही मौजूद ऐसी दुकानों और रेहडि़यों का रुख करते हैं।
हालांकि कुतुब कॉम्प्लेक्स में दो टॉइलेट्स हैं, लेकिन टिकट काउंटर के पास मौजूद टॉइलेट ब्लॉक बहुत छोटे हैं। कैंटीन के लिए एक जगह रिजर्व है, लेकिन यह हमेशा बंद रहती है। एएसआई अधिकारी ने बताया कि कुछ साल पहले इंडियन टूरिजम डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन (आईटीडीसी) ने यह टॉइलेट और कैंटीन बनवाई थीं। इस छोटी कैंटीन में इतनी जगह ही नहीं है कि वहां सारा खाने-पीने का सामान रखा जा सके या कुछ पकाया जा सके, इसलिए इस कैंटीन को खोला ही नहीं गया। हालांकि अब हम इस कैंटीन का स्पेस बढ़ाएंगे। इससे लोगों को अच्छे फूड आइटम्स मिल सकेंगे।
एएसआई के एक आला अधिकारी ने बताया कि कुतुब मीनार की पार्किंग में फिलहाल 50-60 गाड़ियों के लिए जगह है, लेकिन वीक एंड या छुट्टियों के दौरान भीड़ ज्यादा होने की स्थिति में गाड़ी पार्क करने की बहुत बड़ी समस्या पैदा हो जाती है।
ऐसे में इस पार्किंग स्पेस को बढ़ाया जाएगा। नई पार्किंग में टू-वीलर, कार, बस के लिए पार्किंग की जगह अलग-अलग होगी। विकलांगों के लिए अलग से व्यवस्था होगी। उन्होंने बताया कि पार्किंग और टॉइलेट्स बनाने के बारे में सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। उम्मीद है कि जल्द ही यहां काम शुरू हो जाएगा।

Monday, March 1, 2010

कुतुब की बावली : यह हेरिटेज भी बेहाल

८ फरवरी २०१०
रीतेश पुरोहित ।। नई दिल्ली

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित यह तो मानती हैं कि दिल्ली के जल सोतों को भी विरासत के तौर पर देखा जाना चाहिए, लेकिन कई ऐतिहासिक इमारतों की तरह ये जल सोत भी खत्म हो चुके हैं या खत्म होने के कगार पर हैं। महरौली में ख्वाजा कुतुबुदृदीन बख्तियार काकी की दरगाह परिसर में मौजूद सैकड़ों साल पुरानी कुतुब की बावली की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वैसे तो यह बावली गुलाम वंश के जमाने की है, लेकिन न तो इसे एएसआई का संरक्षण हासिल है और न ही दिल्ली सरकार के आर्कियॉलजी डिपार्टमेंट का। 2003 में यह बावली डीडीए के पास थी, उसके बाद वक्फ बोर्ड ने इसे अपनी संपत्ति माना, लेकिन इसे बचाने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजतन आसपास की गंदगी इस बावली में फेंकी जा रही है और अब यह अपनी अंतिम सांसें गिन रही है।

महरौली में ख्वाजा बख्तियार काकी की मजार पर रोज सैकड़ों लोग मत्था टेकने आते हैं, लेकिन यहां मौजूद बावली के बारे में कम ही लोगों को पता है। कुछ साल पहले तक इस बावली में पानी था, लेकिन अब यह पूरी तरह सूख चुकी है। फिलहाल यह बंद है और लोगों को इसके नीचे जाने की इजाजत नहीं है। करीब आठ साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट में पेश की गई लिस्ट में डीडीए को इस बावली का केयरटेकर बताया गया था, लेकिन इसके एक साल बाद हाई कोर्ट में पेश की गई रिवाइज्ड लिस्ट में इस बावली को दिल्ली वक्फ बोर्ड की लिस्ट में दिखाया गया। सूत्रों का कहना है कि दरगाह से जुड़े सारे मसलों की देखरेख के लिए नियुक्त वक्फ बोर्ड की कमिटी भी मानती है कि लोगों ने इस बावली को कूड़ा फेंकने की जगह में तब्दील कर दिया है। कमिटी के मैनेजर फैजान अहमद मानते हैं कि इस बावली की साफ-सफाई की जिम्मेदारी कमिटी की है, लेकिन उनका कहना है कि अगर हम खुद यह काम करवाते हैं तो हमें आसपास के लोगों का विरोध झेलना पड़ सकता है। हम नहीं चाहते कि इस पवित्र जगह पर कोई ऐसी वैसी हरकत हो, इसलिए इसके लिए हम एमसीडी को कई बार पत्र लिख चुके हैं।
दिल्ली में जल सोतों को बचाने की मुहिम से लंबे समय से जुड़े विनोद जैन बताते हैं कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा था कि कोई भी जल सोत जैसे तालाब, झील, बावली आदि की सफाई की जिम्मेदारी उसी एजेंसी की होगी, जिसकी जमीन पर वह जल स्रोत मौजूद है। अगर कोई इसके पीछे अपनी मजबूरी बताता है, तो इसका मतलब यह हुआ कि वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है। जल सोत से जुड़े इस पूरे मसले के लिए हाई कोर्ट ने एक मॉनिटरिंग कमिटी का गठन किया था और दिल्ली सरकार के चीफ सेक्रेटरी राकेश मेहता को इसका अध्यक्ष बनाया था। विनोद का कहना है कि अगर वक्फ बोर्ड वाकई इस बावली को बचाना चाहता है, तो वह इस बारे में दिल्ली सरकार के चीफ सेक्रेटरी से संपर्क क्यों नहीं करता। उनका कहना है कि दिल्ली के इन जल सोतों से जुड़ी एजेंसियां एक तरफ तो उन्हें अपने हाथ से खोना भी नहीं चाहतीं और दूसरी तरफ उनको बचाने की कोशिश भी नहीं करतीं।
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक हफ्ते पहले ही इंटैक के एक कार्यक्रम में कहा था कि दिल्ली के जल सोत भी हमारी विरासत हैं और उन्हें भी ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर देखा जाना चाहिए। दिल्ली में कुआं, तालाब, बावली समेत 629 जल सोत हैं। इनमें से 15 एएसआई के पास, डीडीए के पास 118, दिल्ली सरकार के पास 469 व सीपीडब्ल्यूडी और पीडब्ल्यूडी के पास 4-4 हैं।

Tuesday, February 23, 2010

केमिकल क्लीनिंग से लौटी रौनक

रीतेश पुरोहित


14 feb/ नई दिल्ली ।। लंबे समय से उपेक्षा झेल रहे दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारकों के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स ने संजीवनी का काम किया है और इसके नतीजे अब दिखने लगे हैं। इन स्मारकों का वैभव लौटने लगा है। साउथ दिल्ली के शाहपुर जाट इलाके में ऐतिहासिक सीरी फोर्ट और इसके एकदम नजदीक बनी मोहम्मदीवाली मस्जिद को देखें, तो यह बात सच साबित हो जाती है। आकिर्यॉलजिकल सवेर् ऑफ इंडिया (एएसआई) ने केमिकल क्लीनिंग के जरिए इस ऐतिहासिक स्मारक की गुम हो चुकी चमक को वापस ला दिया है।


एएसआई की दिल्ली सर्कल के सुपरिंटेंडेंट आर्किलॉजिस्ट के. के. मोहम्मद ने बताया कि केमिकल क्लीनिंग के जरिए इस मस्जिद को पूरी तरह साफ किया गया है। धूल, मिट्टी व गंदगी जमने से इस पर बनीं खूबसूरत डिजाइनें और इबारत दिखनी बंद हो गई थीं। केमिकल क्लीनिंग से यह साफ-साफ नजर आने लगी हैं। अब इस स्मारक में पनिंग (चूने को लंबे समय तक गलाए रखना और फिर इस्तेमाल करना) का काम बाकी है। इसके बाद पूरे एरिया का सौंदयीर्करण किया जाएगा। इस मस्जिद के कन्जवेर्शन में 17.5 लाख रुपये खर्च होंगे। हमने दिसंबर में यहां काम शुरू किया था। 70 पसेंट काम हो गया है और एक-दो महीनों में इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है।
एएसआई के साइंस डिपार्टमेंट के एक सीनियर अधिकारी ने बताया इस स्मारक की क्लीनिंग के लिए अमोनिया के लिक्विड का यूज किया जाता है। इससे इमारत पर जमी गंदगी और कालापन निकल जाता है। बाद में इसमें प्रिजरवेटिव का यूज किया जाता है, जो बरसात के पानी को दीवारों के अंदर जाने से रोकता है। कई बार जरूरत के मुताबिक इनमें मुलतानी मिट्टी का लेप लगाया जाता है। इस मिट्टी से किसी हेरिटेज इमारत में चमक आ जाती है।
कन्जवेर्शन वर्क से पहले लोदी काल की यह ऐतिहासिक मस्जिद खंडहर में बदल गई थी। पूरी इमारत पर या तो छोटे-छोटे पौधे उग आए थे या काई जम गई थी। कुछ हिस्सा टूट भी गया था। हालांकि कुछ साल पहले एएसआई ने ही यहां कन्जवेर्शन का काम कराया, लेकिन इसमें चूने के बजाय सीमेंट का इस्तेमाल हुआ, जबकि किसी भी ऐतिहासिक इमारत की मरम्मत के लिए चूना व मोरम का ही इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि सैकड़ों साल पहले ये इमारतें इसी मटीरियल से बनाई जाती थीं। एएसआई के अधिकारी इस बात को मानते हैं। उनका कहना है कि अब हम इस सीमेंट को भी हटा देंगे। उनका कहना है कि इन ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए हमें आज तक इतना बजट नहीं मिला।
लोदी काल की इस इमारत के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। अलाउद्दीन खिलजी के जमाने में बनी ऐतिहासिक सिरी वॉल और यह मस्जिद कॉमनवेल्थ गेम्स के एक मुख्य वेन्यू सिरी फोर्ट स्पोर्ट्स कॉम्प्लैक्स के एकदम नजदीक है। गेम्स के दौरान यहां स्कवैश और बैडमिंटन की प्रतियोगिताएं होंगी। ऐसे में खिलाड़ियों के अलावा हजारों टूरिस्ट भी यहां आएंगे और उम्मीद है कि वे इन ऐतिहासिक इमारतों को भी देखने आएंगे। उन्हें ये स्मारक खराब स्थिति में दिखेंगे, तो देश की बड़ी किरकिरी होगी। इसी वजह से इन दोनों को ही कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए चुने गए 46 स्मारकों की लिस्ट में शामिल किया गया है।

लाल किले का वर्ल्ड हेरिटेज दर्जा खतरे में!

नई दिल्ली/16 dec. 2009।। रीतेश पुरोहित

लाल किले की खूबसूरती में चार-चांद लगाने की कोशिश कर रहे आर्कियॉलजिक सर्वे  ऑफ इंडिया (एएसआई) की कोशिशों को गहरा झटका लगा है। एमसीडी ने लाल किले की बाउंड्री वॉल बनाने और फेन्सिंग के काम को रोक दिया है। इससे यह जगह फिर गंदगी और अतिक्रमण का शिकार होती जा रही है। हेरिटेज एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर लाल किले के सामने इसी तरह की बदहाली रहती है, तो उसका वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा भी खतरे में पड़ सकता है।

असल में एएसआई ने लाल किले के वर्ल्ड हेरिटेज साइट के दजेर् को ध्यान में रखते हुए एक कॉम्प्रिहेंसिव कंजर्वेशन मैनेजमेंट प्लान (सीसीएमपी) तैयार किया था। इसके तहत इस मुगल कालीन ऐतिहासिक धरोहर के बाहर बाउंड्री वॉल बनाने के अलावा इस इलाके के सौंदर्यीकरण की भी योजना थी। पहले यहां बसों की टिकट बेचने के लिए करीब 14 कियोस्क लगे हुए थे। इसी फुटपाथ पर दुकानें भी लगाई जाती थीं। एएसआई ने इन कियोस्क को हटाने और अतिक्रमण खत्म करने के लिए एमसीडी को पत्र लिखा था। एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ये कियोस्क और इनके आसपास फैली गंदगी से न सिर्फ लाल किले की खूबसूरती पर धब्बा लग रहा था, बल्कि यह सीसीएमपी के आड़े भी आ रहा था। इसके बाद एमसीडी ने इन वेंडरों को यहां से हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया था। उन्होंने बताया कि एमसीडी की परमीशन के बाद हमने यहां करीब तीन महीने पहले काम शुरू कर दिया था। लगभग 80 फीसदी काम हो भी गया था, लेकिन एमसीडी ने अचानक इसे अपनी जमीन बताकर हमारा काम रुकवा दिया। उनका कहना है कि इस बारे में एमसीडी से बात की जा रही है और हमें पॉजिटिव रिजल्ट मिलने की उम्मीद है। एमसीडी के प्रवक्ता दीप माथुर ने माना है कि एएसआई को यहां काम करने से रोका गया है। उनका कहना है कि हमारे कुछ अधिकारियों के संज्ञान में यह बात आई थी कि एमसीडी की इजाजत के बिना यहां काम किया जा रहा है। इसी वजह से हमने काम रुकवाया।
सूत्रों का कहना है कि वेंडरों का वही पुराना ग्रुप फिर सक्रिय हो गया है और उसी के दबाव में काम रोका गया है। रोज हजारों लोग लाल किला देखने आते हैं और इसी वजह से यहां काफी भीड़ रहती थी। लाल किले की आड़ में इनका धंधा खूब चमक रहा था और नई जगह शिफ्ट होने से इनके धंधे में मंदी आ गई है। अब ये लोग अपनी वही जगह फिर से चाहते हैं और इसके लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं।
बाउंड्री वॉल का काम रुकने के बाद अब इस एरिया पर फिर से अवैध कब्जा होता जा रहा है। बाउंड्री के बिल्कुल पास ही कूड़ा पड़ा रहता है। लोगों ने नई दीवार को ही टॉयलेट की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। सोसायटी फॉर कल्चरल हेरिटेज के सदस्य संजय भार्गव का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, इस सड़क पर कोई तहबाजारी नहीं की जा सकती और अगर विशेष तौर पर अनुमति दी भी जाती है, तो पहले फुटपाथ के लिए पांच फुट जमीन छोड़नी पड़ेगी। इसका मतलब यह हुआ कि यहां लगने वाली सारी दुकानें अवैध हैं। उनका कहना है कि अगर हालत में कोई सुधार नहीं आया, तो लाल किले को मिले वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा भी खतरे में पड़ सकता है।

Monday, February 22, 2010

जंतर मंतर का ये हाल आजतक नहीं हुआ

रीतेश पुरोहित नई दिल्ली।। जब पूरी दुनिया गुरुवार से वर्ल्ड हेरिटेज वीक मना रही थी, उसी दौरान दिल्ली में करीब 250 साल पुराने जंतर-मंतर को नुकसान पहुंचाया जा रहा था। गुरुवार को किसानों की रैली में शामिल आए हजारों लोगों ने यहां लगे कुछ यंत्रों के ताले तोड़ दिए और पार्क को बुरी तरह गंदा कर दिया। इतना ही नहीं, यहां आए टूरिस्टों को भी परेशान किया। आर्कियेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कनॉट प्लेस के आसपास पहले भी कई रैलियां हुई हैं, लेकिन ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा। गुरुवार को जंतर-मंतर में मौजूद एक एएसआई अधिकारी ने बताया कि गुरुवार को सुबह 6:30 बजे से ही जंतर मंतर में लोगों का आना शुरू हो गया था। शुरुआत में हमें इस बात की उम्मीद ही नहीं थी कि यहां हजारों लोग इकट्ठा हो जाएंगे, लेकिन 8 बजे के बाद यह संख्या बढ़ने लगी। इन लोगों ने पार्क में बैठकर शराब पी। यहां लगे डस्टबिन, टूरिस्टों के बैठने की कुर्सियां, दरवाजों और फ्लड लाइटों को तोड़ दिया। कुछ यंत्रों में लगे ताले और कांच तोड़ दिए, पौधों को उखाड़ दिया। यहां लगे एक पेड़ को काटकर जला भी दिया। इतना ही नहीं, जंतर-मंतर परिसर में टॉयलेट भी की। उन्होंने बताया कि दिन में कुछ विदेशी और भारतीय टूरिस्ट भी यहां घूमने के लिए आए थे। इन लोगों ने उन पर भी भद्दे कॉमेंट किए और छेड़छाड़ भी की। एएसआई के सूत्रों का कहना है कि पहले तो हम लोगों ने ही इनसे इस तरह की हरकतें न करने की अपील की, लेकिन उन्होंने हमारी बात सुनने के बजाय हमें धमकाया। इसके बाद हमने पुलिस को फोन किया। दो-तीन पुलिसवाले आए। उन्होंने भी रैली में शामिल आए लोगों को पहले समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वे नहीं माने तो चुपचाप वहां से चले गए। एएसआई सूत्रों का कहना है कि हमने इसके बाद पुलिस को दो-तीन बार और फोन लगाया, लेकिन कोई नहीं आया। शाम 4 बजे तक रैली में आए लोगों का उत्पात जारी रहा। इसके बाद बाहर जाने के लिए भी अपनी सहूलियत के लिए रैलिंग को तोड़कर बाहर गए। एएसआई अधिकारी का कहना है कि जहां-जहां रैलिंग तोड़ी गई थी, वहां हमने शुक्रवार को तार लगाकर टेंपरेरी इंतजाम किया है। अब पूरे परिसर में सुधार के लिए कई दिन लग जाएंगे। एएसआई के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट आर्केलॉजिस्ट ए. के. पांडे ने इस घटना को बेहद शर्मनाक और अशोभनीय बताया है। उनका कहना है कि देश के लोगों को अपनी राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करना चाहिए। इस तरह की हरकतों से पूरे देश का नाम बदनाम होता है। एएसआई के एक अन्य अधिकारी का कहना है कि हमने गुरुवार शाम को कनॉट प्लेस थाने में इस बारे में शिकायत दर्ज करा दी है। हालांकि पुलिस ने इस बात से इनकार किया है। पुलिस का कहना है कि हमें न तो ऐसी कोई शिकायत मिली है और न ही कोई एफआईआर दर्ज की गई है। पूरे विश्व में 19-25 नवंबर तक वर्ल्ड हेरिटेज वीक मनाया जाता है। एएसआई ने गुरुवार को ही लालकिले में लोगों को ऐतिहासिक इमारतों के प्रति जागरूक बनाने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया था।